
Mangalwar Vrat Katha : मंगलवार का व्रत हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। जो भी भक्त श्रद्धा और नियमपूर्वक यह व्रत करता है, उसके जीवन से भय, रोग और सभी प्रकार के संकट दूर हो जाते हैं। इस व्रत की शुरुआत प्रातःकाल स्नान और भगवान हनुमान के ध्यान से की जाती है, जिससे मन और आत्मा दोनों पवित्र हो जाते हैं।
मंगलवार व्रत कथा (Mangalwar Vrat Katha)
Mangalwar Vrat Katha : भगवान शंकर के ग्यारहवें अवतार माने जाने वाले पवनपुत्र हनुमानजी का व्रत करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है। सुख-समृद्धि, यश, और संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वालों के लिए मंगलवार का उपवास अत्यंत फलदायी माना गया है। हनुमानजी से संबंधित मंगलवार व्रत कथा का श्रद्धापूर्वक पाठ करने से व्रत पूर्ण होता है और भगवान की असीम कृपा प्राप्त होती है।
मंगलवार को अंजनीसुत हनुमानजी की सच्चे मन से पूजा, उपवास और व्रत कथा के श्रवण या पाठ से सभी दुख-कष्ट दूर हो जाते हैं। जो भक्त नियमित रूप से प्रत्येक मंगलवार यह व्रत करते हैं, उन्हें हनुमानजी की विशेष कृपा, बल और भक्ति का वरदान प्राप्त होता है।
ऋषिनगर नामक नगर में केशवदत्त नाम का एक ब्राह्मण अपनी धर्मपत्नी अंजलि के साथ निवास करता था। उनके पास धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं थी और नगर में सभी उनका आदर करते थे। परंतु संतान न होने के कारण केशवदत्त हमेशा व्यथित रहता था।
संतान प्राप्ति की आशा में दोनों पति-पत्नी हर मंगलवार श्रद्धा और भक्ति के साथ हनुमानजी की पूजा करते और व्रत रखते थे। इस प्रकार कई वर्ष बीत गए, परंतु उन्हें अभी भी संतान का सुख प्राप्त नहीं हुआ। ब्राह्मण निराश तो हुआ, लेकिन उसने व्रत और पूजा का नियम नहीं छोड़ा।
एक दिन केशवदत्त पूजा-अर्चना के लिए वन की ओर चला गया, वहीं उसकी पत्नी अंजलि घर पर रहकर मंगलवार का व्रत करने लगी। दोनों पति-पत्नी पूरी निष्ठा से पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत करते रहे। अगले मंगलवार को अंजलि ने व्रत तो किया, लेकिन संयोगवश उस दिन वह हनुमानजी को भोग नहीं लगा सकी और सूर्यास्त के बाद उपवास की अवस्था में ही भूखी सो गई।
अगले मंगलवार को अंजलि ने निश्चय किया कि जब तक वह हनुमानजी को भोग नहीं लगाएगी, तब तक स्वयं भोजन नहीं करेगी। इस दृढ़ संकल्प के साथ उसने छः दिन तक अन्न और जल का स्पर्श नहीं किया। सातवें दिन जब मंगलवार आया, तो अंजलि ने पूरी श्रद्धा से हनुमानजी की पूजा आरंभ की, परंतु अत्यधिक भूख-प्यास के कारण वह बेहोश होकर भूमि पर गिर पड़ी।
उसी समय हनुमानजी उसके सामने स्वप्न में प्रकट हुए और बोले — “उठो पुत्री अंजलि! तुम्हारी भक्ति और तपस्या से मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। तुम्हें एक सुंदर और गुणवान पुत्र का वरदान देता हूँ।” इतना कहकर प्रभु अंतर्धान हो गए। जब अंजलि की चेतना लौटी, तो उसने हर्षित होकर हनुमानजी को भोग लगाया और फिर स्वयं भोजन ग्रहण किया।
कुछ समय पश्चात्, हनुमानजी की कृपा से अंजलि ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया। चूँकि वह मंगलवार के दिन उत्पन्न हुआ था, इसलिए उसका नाम ‘मंगलप्रसाद’ रखा गया। कुछ दिनों बाद उसका पति केशवदत्त घर लौटा। जब उसने उस बालक को देखा, तो आश्चर्यचकित होकर पत्नी से पूछा — “यह सुंदर बच्चा किसका है?”
अंजलि ने प्रसन्नतापूर्वक बताया कि कैसे हनुमानजी ने स्वप्न में दर्शन देकर उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था। परंतु दुर्भाग्यवश, केशवदत्त उसकी बातों पर विश्वास नहीं कर सका। उसके मन में संशय उत्पन्न हो गया और उसने सोचा कि अंजलि उसे धोखा दे रही है तथा अपने पाप को छिपाने के लिए झूठा बहाना बना रही है।
कुछ समय बाद केशवदत्त के मन का संदेह और गहराता गया। वह अपने ही पुत्र मंगलप्रसाद को समाप्त करने की योजना बनाने लगा। एक दिन वह स्नान करने के बहाने मंगल को साथ लेकर कुएँ की ओर गया। वहाँ अवसर पाकर उसने निर्दोष बालक को कुएँ में धकेल दिया और घर लौटकर अंजलि से कहा — “मंगल तो मेरे साथ आया ही नहीं।”
लेकिन जैसे ही उसके ये शब्द पूरे हुए, उसी क्षण मंगल प्रसाद हँसता और खेलता हुआ घर के भीतर आ गया। यह देखकर केशवदत्त आश्चर्य से स्तब्ध रह गया, उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं।
उसी रात हनुमानजी ने केशवदत्त को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा —
“हे ब्राह्मण! तुम्हारे और तुम्हारी पत्नी के मंगलवार व्रत से प्रसन्न होकर ही मैंने तुम्हें पुत्र का वरदान दिया था। फिर अपनी पतिव्रता पत्नी पर इतना बड़ा संदेह क्यों किया?”
हनुमानजी के वचनों से केशवदत्त का भ्रम दूर हो गया। उसने तत्काल अंजलि को जगाया, अपने अपराध के लिए क्षमा माँगी और स्वप्न में मिले हनुमानजी के दर्शन की पूरी बात बताई। वह अत्यंत पश्चाताप से भर उठा और अपने पुत्र मंगलप्रसाद को हृदय से लगाकर प्रेमपूर्वक आशीर्वाद दिया।
उस दिन के बाद उनके घर में सुख-शांति और आनंद का वास हो गया। मंगलवार के व्रत और कथा के प्रभाव से केशवदत्त के सभी कष्ट दूर हो गए। इसी प्रकार जो भी स्त्री या पुरुष श्रद्धा और विधि-विधान से मंगलवार व्रत करता है तथा हनुमानजी की यह पवित्र कथा सुनता है, उसके जीवन के सभी दुःख समाप्त हो जाते हैं और घर में धन, सुख तथा समृद्धि का स्थायी वास होता है।
इसे भी पढ़ें:
- हनुमानजी की आरती आरती कीजै हनुमान लला की अर्थ सहित
- Aaj ke Vrat evam Muhurat: आज का पंचांग: व्रत, शुभ मुहूर्त, योग, तिथि और पूजा विधि जानें
- आज का राशिफल (Aaj ka Rashifal) जानें अपना आज का भविष्यफल
🔱 मंगलवार व्रत व पूजा की विधि (Mangalwar Vrat Puja Vidhi)
-
प्रातःकाल स्नान करें – मंगलवार के दिन प्रातः सूर्योदय से पहले स्नान कर लाल वस्त्र धारण करें।
-
हनुमानजी का ध्यान करें – पूर्व दिशा की ओर मुख करके हनुमानजी का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें –
“ॐ हनुमते नमः, आज मैं मंगलवार व्रत रखता/रखती हूँ, कृपा करके सभी संकटों को दूर करें।” -
पूजन सामग्री तैयार करें – लाल फूल, सिंदूर, दीपक, गुड़, बेसन के लड्डू, तुलसीपत्र और हनुमान चालीसा रखें।
-
हनुमानजी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें – उन पर सिंदूर, चमेली का तेल, फूल और तुलसी चढ़ाएँ।
-
दीप प्रज्वलित करें – घी या सरसों के तेल का दीपक जलाएँ और हनुमान चालीसा, बजरंग बाण या सुंदरकांड का पाठ करें।
-
कथा श्रवण करें – मंगलवार व्रत कथा ध्यानपूर्वक पढ़ें या सुनें।
-
प्रसाद अर्पित करें – अंत में हनुमानजी को गुड़-चना या बेसन लड्डू का भोग लगाएँ और आरती करें।
-
संध्या के समय – पुनः दीपक जलाकर “ॐ हनुमते नमः” का जाप करें।
-
व्रत नियम – इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें, नमक रहित भोजन या फलाहार करें।
🌺 मंगलवार व्रत का महत्व (Mangalwar Vrat Significance)
मंगलवार का दिन हनुमानजी को समर्पित है। इस दिन व्रत रखने से –
-
जीवन के सभी कष्ट, भय और संकट दूर होते हैं।
-
व्यक्ति को शक्ति, साहस और आत्मविश्वास प्राप्त होता है।
-
मंगल दोष, रक्त विकार और क्रोध से संबंधित समस्याओं का निवारण होता है।
-
हनुमानजी की कृपा से रोगमुक्ति, सफलता और मानसिक शांति मिलती है।
-
यह व्रत कर्ज मुक्ति और शत्रु पर विजय दिलाने वाला माना गया है।
जो भी श्रद्धा से मंगलवार व्रत करता है, उसके जीवन में हनुमानजी का विशेष संरक्षण रहता है।
हनुमानजी की आरती (Hanuman Aarti Lyrics)
Hanuman Ji Ki Aarti Lyrics : हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हनुमान जी का जन्मदिवस मनाया जाता है।
हनुमान जन्मोत्सव के पावन दिन पर भक्त विशेष विधि-विधान से बजरंगबली की पूजा-अर्चना करते हैं। इस अवसर पर श्रद्धालु उपवास रखकर प्रभु को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। हनुमानजी कलियुग के जाग्रत और प्रधान देवता माने जाते हैं, जो आज भी अजर-अमर होकर अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
उनकी कृपा से जीवन के सभी दुःख, भय और कष्ट समाप्त हो जाते हैं। जो भक्त हनुमान जन्मोत्सव के दिन पूरे मन से उनकी आरती करते हैं, उन्हें हनुमानजी की विशेष अनुकम्पा प्राप्त होती है। इस दिन की गई आरती से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख, बल तथा समृद्धि का वास होता है।
हनुमान जी की आरती-
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरिवर कांपे।
रोग दोष जाके निकट न झांके॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई।
सन्तन के प्रभु सदा सहाई॥
आरती कीजै हनुमान लला की।
दे बीरा रघुनाथ पठाए।
लंका जारि सिया सुधि लाए॥
लंका सो कोट समुद्र-सी खाई।
जात पवनसुत बार न लाई॥
आरती कीजै हनुमान लला की।
लंका जारि असुर संहारे।
सियारामजी के काज सवारे॥
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे।
आनि संजीवन प्राण उबारे॥
आरती कीजै हनुमान लला की।
पैठि पाताल तोरि जम-कारे।
अहिरावण की भुजा उखारे॥
बाएं भुजा असुरदल मारे।
दाहिने भुजा संतजन तारे॥
आरती कीजै हनुमान लला की।
सुर नर मुनि आरती उतारें।
जय जय जय हनुमान उचारें॥
कंचन थार कपूर लौ छाई।
आरती करत अंजना माई॥
आरती कीजै हनुमान लला की।
जो हनुमानजी की आरती गावे।
बसि बैकुण्ठ परम पद पावे॥
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
श्री बालाजी महाराज की आरती
ॐ जय हनुमत वीरा,
स्वामी जय हनुमत वीरा ।
संकट मोचन स्वामी,
तुम हो रनधीरा ॥
॥ ॐ जय हनुमत वीरा..॥
पवन पुत्र अंजनी सूत,
महिमा अति भारी ।
दुःख दरिद्र मिटाओ,
संकट सब हारी ॥
॥ ॐ जय हनुमत वीरा..॥
बाल समय में तुमने,
रवि को भक्ष लियो ।
देवन स्तुति किन्ही,
तुरतहिं छोड़ दियो ॥
॥ ॐ जय हनुमत वीरा..॥
कपि सुग्रीव राम संग,
मैत्री करवाई।
अभिमानी बलि मेटयो,
कीर्ति रही छाई ॥
॥ ॐ जय हनुमत वीरा..॥
जारि लंक सिय-सुधि ले आए,
वानर हर्षाये ।
कारज कठिन सुधारे,
रघुबर मन भाये ॥
॥ ॐ जय हनुमत वीरा..॥
शक्ति लगी लक्ष्मण को,
भारी सोच भयो ।
लाय संजीवन बूटी,
दुःख सब दूर कियो ॥
॥ ॐ जय हनुमत वीरा..॥
रामहि ले अहिरावण,
जब पाताल गयो ।
ताहि मारी प्रभु लाय,
जय जयकार भयो ॥
॥ ॐ जय हनुमत वीरा..॥
राजत मेहंदीपुर में,
दर्शन सुखकारी ।
मंगल और शनिश्चर,
मेला है जारी ॥
॥ ॐ जय हनुमत वीरा..॥
श्री बालाजी की आरती,
जो कोई नर गावे ।
कहत इन्द्र हर्षित,
मनवांछित फल पावे ॥
॥ ॐ जय हनुमत वीरा..॥













