मार्गशीर्ष गुरुवार महालक्ष्मी व्रत कथा व पूजा विधि, आरती सहित | Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha

Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha, मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा व पूजा विधि
Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha, मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा व पूजा विधि

Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha: मार्गशीर्ष माह के प्रत्येक गुरुवार को मां लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती है। इस दिन किया गया व्रत और पूजन जीवन में स्थायी सुख, समृद्धि और धन का संचार करता है। जो भी भक्त श्रद्धा भाव से इस व्रत का पालन करता है, उसके घर में सदैव धन, ऐश्वर्य और शांति बनी रहती है। कहा गया है कि मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत करने से मां लक्ष्मी स्वयं भक्त के घर निवास करती हैं। आइए जानते हैं इस पावन अवसर पर की जाने वाली मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा, पूजा विधि और आरती का संपूर्ण विवरण।

मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा व पूजा विधि (मार्गशीर्ष गुरुवार व्रत कथा) | Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha

🌺 मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत पूजा विधि:

Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha: मार्गशीर्ष माह में किया गया महालक्ष्मी व्रत अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है। मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत को स्त्री और पुरुष दोनों कर सकते हैं। जो भी इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास से करता है, उसके जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य की वृद्धि होती है।

🪔 व्रत आरंभ का समय

Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha: इस व्रत की शुरुआत किसी भी महीने के पहले गुरुवार (बृहस्पतिवार) से की जा सकती है। नियमपूर्वक हर गुरुवार को व्रत करते हुए लगातार आठ गुरुवार तक इसका पालन करें। आठवें गुरुवार को व्रत का समापन किया जाता है। जो भक्त चाहें, वे इस व्रत को पूरे वर्षभर भी कर सकते हैं।

🌼 दैनिक पूजा विधि – मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा

हर गुरुवार सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर किसी पवित्र स्थान पर श्री महालक्ष्मी जी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। दीपक जलाएँ, पुष्प, चंदन, अक्षत, हल्दी, कुमकुम, और मिठाई का प्रसाद चढ़ाएँ। भक्ति भाव से महालक्ष्मी व्रत कथा का पाठ करें और अंत में आरती करें।

👩‍🦰 सुहागन एवं कुमारिकाओं का पूजन

  • अंतिम (आठवें) गुरुवार को आठ सुहागन स्त्रियों या आठ कुँवारी कन्याओं को आमंत्रित करें।
  • उन्हें सम्मानपूर्वक पीढ़ा या आसन पर बिठाएँ और श्री महालक्ष्मी का रूप मानकर हल्दी-कुमकुम लगाएँ।
  • इसके बाद फल, प्रसाद और कथा की एक प्रति भेंट करें।
  • भक्त भाव से नमस्कार करें और आशीर्वाद प्राप्त करें।

👨‍🦱 पुरुष भी कर सकते हैं मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत

  • यह व्रत केवल महिलाओं के लिए ही नहीं, पुरुष भी इसे श्रद्धा से कर सकते हैं।
  • वे भी सुहागन या कुमारिकाओं को बुलाकर हल्दी-कुमकुम अर्पित करें और व्रत कथा पढ़ें।

🕉️ मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत भोजन और नियम

  • जिस दिन व्रत हो, उस दिन उपवास रखें।
  • दूध, फल या हल्का फलाहार लें — परंतु खाली पेट न रहें।
  • रात को भोजन करने से पहले देवी को भोग लगाएँ, फिर परिवार के साथ भोजन करें।

इस प्रकार श्रद्धा, शुद्धता और भक्ति से किया गया मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत भक्त के जीवन में स्थायी सौभाग्य, धन और सुख-शांति का वरदान देता है। 🌺

📜 पद्मपुराण अनुसार मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत का महत्व और विशेष नियम

पद्मपुराण में इस व्रत का उल्लेख विशेष रूप से गृहस्थजनों के लिए किया गया है।
यह व्रत पति-पत्नी दोनों मिलकर करें — इससे घर में सुख, शांति और लक्ष्मी-कृपा बनी रहती है।

💞 पति-पत्नी द्वारा संयुक्त पूजा

यदि किसी कारणवश पति या पत्नी पूजा में उपस्थित न हो सकें, तो पूजा किसी अन्य व्यक्ति से करवाई जा सकती है,
परंतु उपवास स्वयं अवश्य रखना चाहिए।
यदि किसी गुरुवार को पूजा में बाधा आ जाए, तो उस दिन की गिनती व्रत की गणना में न करें।

🌸 अन्य पूजा के साथ भी संभव

अगर किसी अन्य पूजा या व्रत का उपवास गुरुवार के दिन पड़ जाए, तब भी महालक्ष्मी व्रत किया जा सकता है।
यह पूजा दिन या रात — किसी भी समय की जा सकती है।
दिन में उपवास रखें और रात में महालक्ष्मी पूजन कर भोजन करें।

🪔 मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा श्रवण का महत्व

महालक्ष्मी व्रत कथा का श्रवण अत्यंत शुभ माना गया है।
इसलिए जब कथा पढ़ी जाए, तो अपने पड़ोसी, रिश्तेदार और घर के सदस्य — सभी को बुलाएँ।
कथा के समय पूर्ण शांति और एकाग्रता बनाए रखें ताकि माँ लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहे।

📅 मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत आरंभ और समापन

  • इस व्रत की शुरुआत अगहन (मार्गशीर्ष) मास के पहले गुरुवार से करें,
    और अंतिम (आठवें) गुरुवार को विधिपूर्वक समापन करें।
  • यदि किसी माह में पाँच गुरुवार हों — और उनमें से कोई दिन अमावस्या या पूर्णिमा पर पड़े,
    तो भी उस दिन महालक्ष्मी पूजन अवश्य करें।
  • इस प्रकार श्रद्धा, संयम और निष्ठा से किया गया मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत
  • भक्त को धन-समृद्धि, सौभाग्य और गृहस्थ जीवन में स्थायी सुख प्रदान करता है। 🌺

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🌺 मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा – 1

Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha: यह कथा द्वापर युग के समय की है, जब भारतवर्ष के सौराष्ट्र देश में भद्रश्रवा नामक पराक्रमी राजा राज्य करते थे। वे धर्मप्रिय, दयालु और अपनी प्रजा के कल्याण के लिए सदा तत्पर रहते थे। उनकी पत्नी रानी सुरतचंद्रिका अत्यंत सुंदर, सुलक्षणा और पतिव्रता नारी थीं। दोनों के सात पुत्र और एक कन्या हुई, जिसका नाम रखा गया श्यामबाला। यह कन्या सभी को अत्यंत प्रिय थी और घर में सुख-शांति का प्रतीक मानी जाती थी।

एक दिन महालक्ष्मी जी के मन में विचार आया कि वे कुछ समय के लिए इस राजा के राजमहल में निवास करें। उन्होंने सोचा कि यदि वे राजा के यहाँ रहेंगी, तो उसे दोगुनी धन-संपत्ति प्राप्त होगी, जिससे वह अपनी प्रजा का और भी अधिक कल्याण कर सकेगा। लक्ष्मी जी के मन में यह भी भाव आया कि यदि वे किसी गरीब व्यक्ति के घर रहेंगी, तो वह व्यक्ति उस संपत्ति का उपयोग केवल अपने स्वार्थ के लिए करेगा, न कि दूसरों की भलाई के लिए।

यह सोचकर श्री महालक्ष्मी जी ने एक वृद्ध ब्राह्मण स्त्री का रूप धारण किया। हाथ में एक लाठी ली और लाठी के सहारे राजा के महल की ओर चल पड़ीं। यद्यपि उन्होंने बुढ़िया का रूप लिया था, लेकिन उनके मुख पर देवी का तेज झलक रहा था।

जब वे रानी सुरतचंद्रिका के द्वार पर पहुँचीं, तो उन्हें देखकर एक दासी आगे आई। दासी ने आदरपूर्वक उनसे पूछा — “माता जी, आप कौन हैं? कहाँ से आई हैं? आपका धर्म, कार्य और उद्देश्य क्या है?”

तब वृद्ध ब्राह्मण स्त्री के रूप में माता लक्ष्मी ने शांत स्वर में उत्तर दिया —
“बालिके, मेरा नाम कमला है, और मेरे पति का नाम भुवनेश है। हम द्वारका नगरी में रहते हैं। तुम्हारी रानी पिछले जन्म में एक वैश्य की पत्नी थी। वह वैश्य अत्यंत गरीब था। दारिद्र्य के कारण उनके घर में प्रतिदिन झगड़े होते रहते थे। रानी का पूर्वजन्म का पति क्रोधित होकर उसे मारता-पीटता था। उन दुखों से व्यथित होकर वह स्त्री घर छोड़कर जंगल की ओर निकल पड़ी और कई दिनों तक भूखी-प्यासी भटकती रही।”

माता लक्ष्मी ने आगे कहा — “उस स्त्री की दुर्दशा देखकर मुझे उस पर दया आई। तब मैंने उसे सुख और संपत्ति देने वाली श्री महालक्ष्मी की कथा सुनाई। मेरे कहने पर उसने श्रद्धा और विश्वास से श्री महालक्ष्मी व्रत किया। उस व्रत के प्रभाव से श्री महालक्ष्मी उस पर प्रसन्न हुईं और उसकी गरीबी समाप्त हो गई। उसका घर धन, संतान और संपत्ति से भर गया। कुछ समय बाद जब वह और उसका पति इस संसार से विदा हुए, तो महालक्ष्मी व्रत करने के कारण उन्हें लक्ष्मी लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उन्होंने जितने वर्ष यह व्रत किया था, उतने ही हजारों वर्ष तक वे सुख भोगते रहे।

अब इस जन्म में वही स्त्री राजा भद्रश्रवा की रानी सुरतचंद्रिका बनकर जन्मी है, परंतु वह श्री महालक्ष्मी व्रत करना भूल गई है। उसे यह याद दिलाने के लिए ही मैं यहाँ आई हूँ।” बुढ़िया के ये वचन सुनकर दासी ने आदरपूर्वक उन्हें प्रणाम किया और पूछा — “माता, यह व्रत किस प्रकार किया जाता है? कृपया इसकी विधि और महिमा बताइए।” तब बुढ़िया रूप में माता लक्ष्मी ने दासी को पूजन की पूरी विधि और व्रत का महत्व समझाया। दासी ने माता के चरणों में प्रणाम किया और भीतर जाकर रानी को सारी बातें बताईं।

रानी, जो राजवैभव और ऐश्वर्य में डूबी हुई थी, अपनी संपत्ति और अधिकार के गर्व में चूर थी। दासी से बुढ़िया की बातें सुनते ही वह क्रोध से भर उठी। वह महल से बाहर आई और द्वार पर खड़ी बुढ़िया रूपी श्री महालक्ष्मी पर बरस पड़ी। उसे यह ज्ञात नहीं था कि उसके द्वार पर स्वयं महालक्ष्मी माता खड़ी हैं। रानी के इस प्रकार के रूखे व्यवहार और अपने अनादर को देखकर माता ने वहाँ ठहरना उचित नहीं समझा और महल से प्रस्थान कर गईं।

रास्ते में उन्हें राजकुमारी श्यामबाला मिली। माता ने उसे सारी बात बताई। यह सुनकर श्यामबाला ने श्रद्धा से उनके चरणों में सिर झुका दिया और क्षमा मांगी। माता उसकी भक्ति और नम्रता से प्रसन्न हुईं और उसे श्री महालक्ष्मी व्रत की विधि बताई। उस दिन अगहन (मार्गशीर्ष) मास का पहला गुरुवार था। श्यामबाला ने उसी दिन श्रद्धा और विश्वास के साथ महालक्ष्मी व्रत आरंभ किया। व्रत के प्रभाव से उसे राजा सिद्धेश्वर के पुत्र मालाधर के साथ विवाह का वरदान प्राप्त हुआ। विवाह के बाद उसका जीवन धन, ऐश्वर्य और सौभाग्य से भर गया, और वह अपने पति के साथ आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगी।

उधर रानी पर महालक्ष्मी का प्रकोप हुआ। राजा भद्रश्रवा का राज्य, धन-दौलत और वैभव धीरे-धीरे समाप्त हो गया। यहाँ तक कि उन्हें खाने के भी लाले पड़ गए। ऐसी विपत्ति में एक दिन रानी ने राजा से कहा — “हमारी पुत्री श्यामबाला का विवाह राजा मालाधर से हुआ है। वह बड़ा धनवान और ऐश्वर्यशाली है। क्यों न हम उसके पास चलें और अपनी विपत्ति उसे बताएं, वह अवश्य हमारी सहायता करेगा।”

Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha: राजा भद्रश्रवा को यह बात उचित लगी और वे अपने दामाद के राज्य की ओर चल पड़े। राजधानी पहुँचकर एक तालाब के किनारे कुछ देर विश्राम करने लगे। तभी तालाब से पानी भरने आई दासियों ने उन्हें देखा और पहचानने के लिए प्रश्न किए। जब उन्हें पता चला कि वे राजकुमारी श्यामबाला के पिता हैं, तो वे शीघ्र ही महल पहुँचीं और रानी को यह समाचार सुनाया। श्यामबाला यह जानकर अत्यंत प्रसन्न हुई। उसने दासियों को भेजकर अपने पिता के लिए राजपरिधान और साज-सामान भिजवाए और बड़े सम्मान के साथ उनका स्वागत किया। उन्हें भोजन करवाया, आदर-सत्कार किया और अपने घर में ठहराया।

Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha: जब राजा भद्रश्रवा लौटने लगे तो उन्हें सोने की मोहरों से भरा एक घड़ा दिया गया। राजा जब अपने राज्य लौटे, तो उन्हें देखकर रानी सुरतचंद्रिका बहुत खुश हुई। उसने उत्सुकता से सोने की मोहरों से भरे घड़े का मुँह खोला, पर जैसे ही देखा कि उसमें सोने के स्थान पर केवल कोयले भरे हैं, तो वह हताश हो गई। यह सब श्री महालक्ष्मी के प्रकोप का परिणाम था, क्योंकि उन्होंने माता की पूजा और व्रत को भुला दिया था। इस प्रकार उनकी दुर्दशा में कई दिन बीत गए। फिर अगहन महीने के अंतिम गुरुवार को रानी ने स्वयं अपनी बेटी श्यामबाला के पास जाने का निश्चय किया। वहाँ जाकर उसने देखा कि श्यामबाला ने श्रद्धा से श्री महालक्ष्मी का व्रत रखा है, विधिवत पूजा की है और अपनी माता से भी यह व्रत करवाया है।

व्रत संपन्न होने के बाद रानी अपने घर लौटी। श्री महालक्ष्मी के व्रत के प्रभाव से उसे पुनः अपना राजपाठ, धन-दौलत और ऐश्वर्य प्राप्त हुआ। उसके जीवन में फिर से सुख, शांति और आनंद लौट आया। कुछ समय बाद राजकन्या श्यामबाला अपने पिता के घर आई। उसे देखकर रानी सुरतचंद्रिका को पुरानी बातें याद आ गईं—वही घड़ा जिसमें उसने धन के बदले कोयला पाया था। इस बार श्यामबाला के आने पर भी रानी ने उसका कोई आदर या आतिथ्य नहीं किया, बल्कि उपेक्षा की। परंतु श्यामबाला ने इस अपमान का बुरा नहीं माना और चुपचाप वहाँ से लौटते समय अपने पिता के घर से थोड़ा सा नमक ले लिया।

जब वह अपने घर पहुँची, तो उसके पति ने पूछा, “अपने मायके से क्या लाई हो?” श्यामबाला ने मुस्कराकर कहा, “वहाँ का सार लाई हूँ।” पति ने जिज्ञासापूर्वक पूछा, “इसका मतलब क्या हुआ?” श्यामबाला बोली, “थोड़ा धैर्य रखिए, सब समझ में आ जाएगा।” उसी दिन उसने सारा भोजन बिना नमक के बनाया और पति को परोस दिया। जब पति ने भोजन चखा तो उसे स्वादहीन लगा। तब श्यामबाला ने थाली में थोड़ा नमक डाला, और देखते ही देखते वही भोजन स्वादिष्ट लगने लगा। श्यामबाला ने मुस्कराकर कहा, “यही है वह मायके से लाया हुआ सार।” पति को उसकी बात का गूढ़ अर्थ समझ में आ गया और दोनों हँसी-खुशी भोजन करने लगे।

कहा गया है कि जो कोई श्रद्धा और भक्ति भाव से श्री महालक्ष्मी की पूजा करता है, उसे माता की कृपा प्राप्त होती है। उसके जीवन में सुख, संपत्ति और शांति आती है, तथा सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। परंतु यह सब पाकर भी माता की पूजा को भूलना नहीं चाहिए। प्रत्येक गुरुवार को श्री महालक्ष्मी का व्रत और पाठ अवश्य करना चाहिए, क्योंकि माता महालक्ष्मी की महिमा ऐसी है कि वह सच्चे भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण कर देती हैं।

मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा – 2

Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha, मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा व पूजा विधि
Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha, मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा व पूजा विधि

Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha: एक गाँव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह अत्यंत श्रद्धा और नियमितता से जगत के पालनहार भगवान विष्णु की आराधना करता था।

उसकी सच्ची भक्ति और निष्ठा से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान श्रीविष्णु स्वयं उसके सामने प्रकट हुए और बोले, “हे ब्राह्मण! मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूँ, माँगो क्या वरदान चाहते हो?” ब्राह्मण ने विनम्र होकर कहा, “भगवान! मैं चाहता हूँ कि धन की देवी माँ लक्ष्मी सदा मेरे घर में निवास करें।” यह सुनकर भगवान विष्णु मुस्कराए और बोले, “ठीक है, मैं तुम्हें उनका मार्ग बताता हूँ। प्रतिदिन मंदिर के सामने एक स्त्री आती है जो वहाँ उपले थापती है, वही देवी लक्ष्मी हैं। जब वह आए, तो तुम विनम्रता से उन्हें अपने घर आने का आमंत्रण देना।”

Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha: श्रीविष्णु ने आगे कहा, “जब धन की देवी माँ लक्ष्मी तुम्हारे घर पधारेंगी, तब तुम्हारा घर धन, अन्न और समृद्धि से भर जाएगा।” इतना कहकर भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए। अगले ही दिन ब्राह्मण सुबह-सुबह मंदिर के सामने जाकर बैठ गया। कुछ समय बाद एक स्त्री आई और उपले थापने लगी। ब्राह्मण ने श्रद्धापूर्वक उनके पास जाकर कहा, “माँ, कृपया मेरे घर पधारिए और इसे अपने चरणों से पवित्र कीजिए।”

Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha: लक्ष्मीजी सब समझ गईं कि यह आग्रह भगवान विष्णु के कहने से हुआ है। उन्होंने स्नेहपूर्वक कहा, “हे ब्राह्मण! मैं अवश्य तुम्हारे घर चलूँगी, लेकिन उसके लिए तुम्हें पहले मेरा व्रत करना होगा। सोलह दिनों तक श्रद्धा से महालक्ष्मी व्रत रखो और सोलहवें दिन रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करो। जब यह व्रत पूरा हो जाएगा, तब तुम्हारी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होंगी और मैं तुम्हारे घर स्थायी रूप से निवास करूँगी।”

Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha: ब्राह्मण ने माता की आज्ञा का पालन करते हुए पूरे मनोयोग से सोलह दिनों तक व्रत और पूजा की। सोलहवें दिन चंद्रमा को अर्घ्य देकर उसने उत्तर दिशा की ओर मुख करके माता लक्ष्मी का ध्यान किया और उन्हें पुकारा। तुरंत ही देवी लक्ष्मी उसके सामने प्रकट हुईं और अपने वचन के अनुसार उसके घर में निवास करने लगीं। उस दिन से ब्राह्मण का घर धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया और उसके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का वास हो गया। ऐसा कहा जाता है कि उसी दिन से मार्गशीर्ष मास में महालक्ष्मी व्रत की परंपरा प्रारंभ हुई, जो आज भी श्रद्धा और विश्वास के साथ की जाती है।

मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत आरती यहाँ पढ़ें 👇

मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है, जो जीवन में असीम सुख-संपत्ति और शांति का वरदान देता है। भक्त जिस निष्ठा से Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha का पाठ और मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा व पूजा विधि का पालन करते हैं, उन्हें माता लक्ष्मी की कृपा सदैव प्राप्त होती है।

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पवन शास्त्री, साहित्याचार्य (M.A.) - Author

भारतीय धर्म, पुराण, ज्योतिष और आध्यात्मिक ज्ञान के शोधकर्ता। Sursarita.in (धर्म कथा गंगा) पर वे सरल भाषा में धार्मिक कथाएँ, राशिफल, पञ्चांग और व्रत विधियाँ साझा करते हैं।

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pawan shastri

Pawan Shastri

Pawan Shastri is an experienced music teacher and spiritual knowledge expert with 10 years of experience in harmonium, keyboard, singing, and classical music.

He holds an M.A. degree and is also a certified Jyotish Shastri (Astrology Expert). His articles and content aim to share devotional, musical, and spiritual knowledge in a simple, accurate, and emotionally engaging manner.

Pawan Shastri believes that the fusion of devotion in melody and wisdom in knowledge can bring peace, energy, and positivity to everyone’s life.