
Om Jai Jagdeesh Hare Aarti: यह आरती भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान करती है। “ॐ जय जगदीश हरे” के हर शब्द में भक्ति, श्रद्धा और समर्पण का भाव समाया है। इस आरती का पाठ करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
विष्णु भगवान की आरती – ॐ जय जगदीश हरे ~ Om Jai Jagdeesh Hare Aarti Lyrics in Hindi
भगवान जगदीश्वर की आरती (विष्णु भगवान की आरती)
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥
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🌺 भगवान जगदीश्वर की आरती ~ Om Jai Jagdeesh Hare Aarti
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे। भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
भावार्थ:
हे प्रभु जगदीश्वर! आपकी जय हो। आप अपने भक्तों के सभी दुख और संकट क्षणभर में दूर कर देते हैं।
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का। सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥
भावार्थ:
जो व्यक्ति श्रद्धा से आपका ध्यान करता है, उसके मन के सारे दुख दूर हो जाते हैं। उसके घर में सुख और समृद्धि आती है और शारीरिक कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी। तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥
भावार्थ:
हे प्रभु! आप ही मेरे माता-पिता हैं। आपके सिवा मेरा कोई दूसरा सहारा नहीं है, इसलिए मैं आपकी ही शरण में आता हूँ।
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥ पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥
भावार्थ:
आप ही पूर्ण परमात्मा हैं, सबके हृदय में निवास करने वाले अंतर्यामी हैं। आप ही परम ब्रह्म और सर्वशक्तिमान ईश्वर हैं।
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता। मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
भावार्थ:
आप करुणा के सागर और सबके पालनहार हैं। मैं अज्ञानी और दोषयुक्त हूँ, कृपया मुझ पर दया करें, हे प्रभु!
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥
भावार्थ:
आप अदृश्य और सबके प्राणों के स्वामी हैं। हे दयालु प्रभु! मैं अज्ञानवश नहीं जानता कि आपको कैसे प्राप्त करूं।
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे। अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
भावार्थ:
हे प्रभु! आप दीनों के साथी और दुखों को हरने वाले हैं। मैं आपके द्वार पर उपस्थित हूँ, कृपया अपना कृपा-हाथ मुझ पर उठाइए।
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा। श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥
भावार्थ:
हे प्रभु! मेरे मन से विषय-विकारों को दूर करो, मेरे पाप हर लो, और मुझे भक्ति, श्रद्धा तथा संतों की सेवा का वरदान दो।
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा। तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥
भावार्थ:
हे प्रभु! मेरा तन, मन, धन सब कुछ आपका ही है। जो कुछ मैं अर्पित कर रहा हूँ, वह भी आपका ही है, इसमें मेरा क्या है?
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे। कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥
भावार्थ:
जो कोई व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से यह आरती गाता है, वह अपनी मनोकामनाएँ अवश्य पूरी करता है — ऐसा शिवानंद स्वामी कहते हैं।
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