
भगवान शिव की आरती “ओम जय शिव ओमकारा” का पाठ करने से मन, शरीर और आत्मा तीनों शुद्ध होते हैं। यह आरती भक्त और भगवान के बीच गहरे भावनात्मक संबंध को जागृत करती है। श्रद्धा और भक्ति से की गई शिव आरती से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और घर में शांति व समृद्धि का वास होता है। कार्तिक, श्रावण और प्रदोष जैसे पवित्र दिनों में इसका विशेष महत्व बताया गया है। जो भक्त प्रतिदिन इस आरती का पाठ करता है, उस पर भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाते हैं।
Shiv Ji Ki Aarti Lyrics | शिवजी की आरती लिरिक्स – ओम जय शिव ओमकारा
Shiv Ji Ki Aarti ‘Om Jai Shiv Omkara’ Lyrics in Hindi: ॐ जय शिव ओमकारा स्वामी जय शिव ओमकार, यह आरती भगवान शिव के पूजन में गाया जाने वाला सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध शिव आरती है। इस आरती के गायन से भगवान शिव के ओमकार स्वरूप का बोध होता है जो उनकी व्यापकता को दर्शाता है। आप भी सावन सोमवार के अवसर पर और पूरे सावन में शिव की आरती ओम जय शिव ओमकार का गायन कीजिए और महान पुण्य का लाभ पाइए।
शिवजी की आरती ‘ॐ जय शिव ओंकारा’ (Om Jai Shiv Omkara Lyrics in Hindi)
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखत त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डल चक्र त्रिशूलधारी।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूरे का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥ स्वामी ओम जय शिव ओंकारा॥
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🔱 ॐ जय शिव ओंकारा अर्थ | Om Jai Shiv Omkara Hindi Meaning

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
👉 हे भगवान शिव! आप ओंकार स्वरूप हैं, आप ही ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र रूप में सृष्टि की रचना, पालन और संहार करने वाले हैं। माता पार्वती आपकी अर्द्धांगिनी हैं। हम सब आपका जयगान करते हैं।
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
👉 हे प्रभु! आप एकमुखी, चतुरमुखी और पंचमुखी रूपों में विराजमान हैं। ब्रह्मा हंस पर, विष्णु गरुड़ पर, और आप स्वयं नंदी पर सवार होकर भक्तों पर कृपा करते हैं।
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखत त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
👉 हे देव! आपके दो, चार और दस भुजाओं वाले अद्भुत रूप अत्यंत सुंदर हैं। सृष्टि के तीनों लोक (स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल) आपके त्रिगुणात्मक रूप को देखकर मोहित हो जाते हैं।
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
👉 हे त्रिपुरारी! आप अक्षमाला, वनमाला और मुण्डमाला धारण करते हैं। आप ही असुर त्रिपुर और कंस का संहार करने वाले हैं। आपके हाथों में माला शोभा पा रही है।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
👉 हे शिव! आप कभी श्वेत वस्त्र, कभी पीत वस्त्र और कभी बाघम्बर धारण करते हैं। आपके साथ सनक, सनंदन, गरुड़, भूत-प्रेत और गण उपस्थित रहते हैं।
कर के मध्य कमण्डल चक्र त्रिशूलधारी।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
👉 आपके हाथों में कमण्डल, चक्र और त्रिशूल हैं। आप ही इस संसार के रचयिता, पालक और संहारकर्ता हैं।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
👉 ब्रह्मा, विष्णु और सदाशिव – ये तीनों अलग प्रतीत होते हैं, परंतु वास्तव में प्रणव (ॐ) अक्षर के मध्य एक ही परमात्मा के रूप हैं।
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूरे का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
👉 हे कैलाशपति! आप कैलाश पर्वत पर माता पार्वती के साथ विराजमान हैं। आपको भांग और धतूरा प्रिय है, और आप भस्म को अपना श्रृंगार मानते हैं।
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
👉 आपकी जटाओं में पवित्र गंगा प्रवाहित होती हैं, गले में मुण्डमाला है, शरीर पर नाग लिपटा हुआ है और आपने मृगचर्म (हिरण की खाल) ओढ़ रखी है।
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
👉 आप काशी के विश्वनाथ रूप में विराजमान हैं, जहाँ नंदी ब्रह्मचारी आपकी सेवा में तत्पर हैं। जो भी भक्त प्रातःकाल आपके दर्शन करता है, वह अनंत पुण्य का भागी होता है।
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥ स्वामी ओम जय शिव ओंकारा॥
👉 जो भी मनुष्य श्रद्धा और प्रेम से आपकी यह आरती गाता है, वह अपने मन के सभी इच्छित फल प्राप्त करता है। शिवानन्द स्वामी कहते हैं — ऐसे भक्त पर सदैव शिव की कृपा बनी रहती है।
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