
Pradosh Vrat Katha: प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना का पवित्र दिन है। इस दिन श्रद्धा और नियमपूर्वक व्रत करने से जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। जो भक्त प्रदोष काल में शिवलिंग की पूजा करता है, उस पर महादेव शीघ्र प्रसन्न होकर अपनी असीम कृपा बरसाते हैं।
कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत कथा, विधि, मुहूर्त, व आरती सहित
कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत मुहूर्त:
Pradosh Vrat Katha: कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत इस वर्ष 3 नवंबर 2025, सोमवार को मनाया जाएगा।
इस दिन त्रयोदशी तिथि का आरंभ 3 नवंबर को सुबह 5 बजकर 7 मिनट पर होगा और इसका समापन 4 नवंबर की रात 2 बजकर 5 मिनट पर होगा।
प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद का शुभ समय) में भगवान शिव की पूजा 3 नवंबर, सोमवार को की जाएगी।
🕉️ प्रदोष व्रत का महत्व
Pradosh Vrat Katha: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत अत्यंत पवित्र और फलदायक व्रतों में से एक माना गया है। यह व्रत प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है — एक बार शुक्ल पक्ष में और दूसरी बार कृष्ण पक्ष में।
यह व्रत विशेष रूप से भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना के लिए समर्पित होता है। प्रदोष काल में की गई शिव पूजा से भक्त को पापों से मुक्ति, मनोकामना की पूर्ति, और जीवन के संकटों से छुटकारा मिलता है।
🌼 कार्तिक मास के प्रदोष व्रत का विशेष महत्त्व
Pradosh Vrat Katha: कार्तिक मास स्वयं में अत्यंत पवित्र माना गया है — इस माह में भगवान शिव, विष्णु और तुलसी की उपासना का विशेष फल बताया गया है।
ऐसे में कार्तिक मास के प्रदोष व्रत का पालन करने से भक्त को अत्यधिक पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
यह माना जाता है कि जो भक्त प्रदोष काल में श्रद्धापूर्वक भगवान शिव की पूजा करते हैं, उनके जीवन से सारे दोष, भय और दरिद्रता दूर हो जाती है, और घर में शांति, स्वास्थ्य व समृद्धि का वास होता है।
कार्तिक मास के प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा
Pradosh Vrat Katha: बहुत समय पहले की बात है, एक नगर में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। उसका जीवन अत्यंत कष्टों और कठिनाइयों से भरा हुआ था। दिन-रात मेहनत करने के बाद भी उसे अपने जीवन में चैन और सुख का अनुभव नहीं होता था। परंतु इन सब परेशानियों के बीच भी वह ब्राह्मण अत्यंत धर्मपरायण था और भगवान शिव का सच्चा भक्त था। उसकी भक्ति इतनी गहरी थी कि हर सुबह और शाम वह भोलेनाथ की आराधना करता, शिव नाम का जाप करता और उनके चरणों में मन लगाता था।
फिर भी, उसके जीवन में कोई सुधार नहीं आ रहा था। गरीबी, अभाव और दुःख उसके साथ साये की तरह बने हुए थे। एक दिन वह अत्यंत दुखी होकर मन ही मन बोला – “हे भोलेनाथ, मैं आपकी इतनी भक्ति करता हूँ, फिर भी मेरे जीवन से दुख क्यों नहीं मिटते? मैं तो केवल आपकी कृपा का पात्र बनना चाहता हूँ।” यह सोचकर उसने मन में निश्चय किया कि अब से वह प्रत्येक मास में आने वाले प्रदोष व्रत का पालन करेगा और पूरी श्रद्धा से शिवजी की उपासना करेगा।
उसने जैसे ही यह संकल्प लिया, वैसे ही हर प्रदोष तिथि को नियमपूर्वक व्रत रखना आरंभ कर दिया। धीरे-धीरे उसकी भक्ति और निष्ठा इतनी गहरी हो गई कि भगवान शिव स्वयं प्रसन्न हो उठे। भक्त की परीक्षा लेने के लिए महादेव ने एक वृद्ध साधु का रूप धारण किया और एक दिन उसके घर पहुँचे। साधु रूप में भगवान शिव ने उससे कहा – “ब्राह्मण, तुम इतने निर्धन होकर भी भगवान शिव की पूजा में इतने तत्पर कैसे हो? क्या तुम्हें कभी निराशा नहीं होती?”
ब्राह्मण ने विनम्रता से उत्तर दिया – “महाराज, जो कुछ भी मेरे जीवन में है, वह शिव की इच्छा से ही है। मैं जो कुछ करता हूँ, वह केवल उनकी प्रसन्नता के लिए करता हूँ। सुख-दुःख सब उनके दिए हुए हैं, मैं तो बस उनकी शरण में हूँ।”
साधु मुस्कुराए और बोले – “यदि तुम मेरी बात मानो, तो मैं तुम्हें ऐसा उपाय बताऊँगा जिससे तुम्हारे सभी दुख दूर हो जाएंगे।” ब्राह्मण ने हाथ जोड़कर कहा – “हे महात्मन, मैं आपकी आज्ञा का पालन अवश्य करूँगा।”
तब साधु ने कहा – “यहीं पास के गाँव में एक बहुत धनवान साहूकार रहता है। तुम उसके पास जाओ और उससे दान में कुछ मांगो। वही तुम्हारी कठिनाइयों का अंत करेगा।” साधु की बात सुनकर ब्राह्मण ने श्रद्धा पूर्वक सिर झुकाया और अगले दिन उस साहूकार के घर पहुँचा। वहाँ जाकर उसने नम्रता से कहा – “सेठजी, मैं एक निर्धन ब्राह्मण हूँ। यदि आप दया कर के मेरी थोड़ी सहायता कर दें, तो मेरे जीवन के कष्ट दूर हो सकते हैं।”
साहूकार ने ब्राह्मण की दयनीय स्थिति देखकर उस पर दया की और उसे कुछ धन दान में दे दिया। साथ ही उसने ब्राह्मण से कहा कि इस धन का उपयोग केवल अपने परिवार की भलाई और आवश्यक कार्यों के लिए ही करना। ब्राह्मण ने साहूकार के दिए हुए धन का सदुपयोग किया, जिससे उसके जीवन की अनेक कठिनाइयाँ समाप्त हो गईं। अब उसके घर में भोजन, वस्त्र और आवश्यक सुविधाओं की कमी नहीं रही।
जब उसके जीवन में कुछ स्थिरता आई, तो उसने और भी अधिक निष्ठा और प्रेम के साथ भगवान शिव की आराधना प्रारंभ कर दी। उसका मन पूर्ण रूप से भक्ति में डूब गया। वह हर दिन शिव नाम का जप करता और प्रदोष व्रत का पालन पूरे नियम और श्रद्धा से करता रहा। उसकी सच्ची भक्ति और अटूट विश्वास से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने प्रकट होकर उस ब्राह्मण को आशीर्वाद दिया कि उसके जीवन में अब कभी अभाव या दुःख नहीं रहेगा। भगवान के आशीर्वाद से उसके घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास हो गया।
इस पौराणिक कथा से यह शिक्षा मिलती है कि जो व्यक्ति सच्चे मन, श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान शिव की पूजा करता है, उसके जीवन की सभी समस्याएँ समाप्त हो जाती हैं। चाहे समय कितना भी कठिन क्यों न हो, भगवान शिव सदैव अपने सच्चे भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें दुखों से मुक्ति दिलाते हैं।
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प्रदोष व्रत की विधि
Pradosh Vrat Katha: प्रदोष व्रत का पालन अत्यंत पवित्रता और श्रद्धा से किया जाता है। इस व्रत के दिन प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए और शुद्ध, स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद भगवान शिव का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें कि आप पूरे दिन उपवास रहकर प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करेंगे। व्रत के दिन दिनभर निराहार या फलाहार रहना शुभ माना गया है।
संध्या के समय जब सूर्य अस्त हो जाए, तब प्रदोष काल आरंभ होता है। इस शुभ काल में शिवलिंग के समक्ष दीप जलाकर पूजा आरंभ करें। भगवान शिव को जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा, भस्म, अक्षत और सुगंधित पुष्प अर्पित करें। पूजा के दौरान “ॐ नमः शिवाय” का जाप करते रहें और भगवान शिव तथा माता पार्वती का ध्यान मन में स्थिर रखें।
पूजन के बाद शिव चालीसा, शिवाष्टक, शिव तांडव स्तोत्र अथवा महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करना अत्यंत फलदायक माना गया है। इससे मन शुद्ध होता है और भगवान शिव की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है। पूजा संपन्न होने के बाद भगवान शिव की आरती करें और भक्तिपूर्वक नमन करें।
अगले दिन प्रातः ब्राह्मणों को भोजन करवाकर, वस्त्र अथवा दक्षिणा दान देकर व्रत का पारण करें। ऐसा करने से यह व्रत पूर्ण माना जाता है और भगवान शिव की कृपा से जीवन के सभी दुख, दोष और बाधाएँ दूर हो जाती हैं।
Shiv Ji Ki Aarti | शिवजी की आरती – ओम जय शिव ओमकारा
Shiv Ji Ki Aarti ‘Om Jai Shiv Omkara’ Lyrics in Hindi: ॐ जय शिव ओमकारा स्वामी जय शिव ओमकार, यह आरती भगवान शिव के पूजन में गाया जाने वाला सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध शिव आरती है। इस आरती के गायन से भगवान शिव के ओमकार स्वरूप का बोध होता है जो उनकी व्यापकता को दर्शाता है। आप भी सावन सोमवार के अवसर पर और पूरे सावन में शिव की आरती ओम जय शिव ओमकार का गायन कीजिए और महान पुण्य का लाभ पाइए।
शिवजी की आरती ‘ॐ जय शिव ओंकारा’ (Om Jai Shiv Omkara Lyrics in Hindi)
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखत त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डल चक्र त्रिशूलधारी।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूरे का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥ स्वामी ओम जय शिव ओंकारा॥













