
जय संतोषी माता आरती माँ संतोषी की कृपा प्राप्त करने और जीवन में शांति, सुख तथा समृद्धि लाने के लिए गाई जाती है। यह आरती हर शुक्रवार के व्रत के समय विशेष रूप से की जाती है ताकि मन की सभी इच्छाएँ पूर्ण हों और दुख दूर हों।
माँ संतोषी को संतोष और प्रेम की देवी कहा गया है। उनकी आराधना से घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और जीवन में संतोष, आनंद तथा सौभाग्य का वास होता है।
🪔 Santoshi Mata Ki Aarti ~ जय संतोषी माता आरती प्रारम्भ
Santoshi Mata Ki Aarti (जय संतोषी माता आरती):
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता।
अपने सेवक जन को, सुख संपत्ति दाता।।
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..
सुंदर, चीर सुनहरी, मां धारण कीन्हो।
हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हो।।
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..
गेरू लाल छटा छवि, बदन कमल सोहे।
मंद हंसत करूणामयी, त्रिभुवन जन मोहे।।
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ..
स्वर्ण सिंहासन बैठी, चंवर ढुरे प्यारे।
धूप, दीप, मधुमेवा, भोग धरें न्यारे।।
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..
गुड़ अरु चना परमप्रिय, तामे संतोष कियो।
संतोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो।।
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..
जय शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही।
भक्त मण्डली छाई, कथा सुनत मोही।
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..
मंदिर जगमग ज्योति, मंगल ध्वनि छाई।
विनय करें हम बालक, चरनन सिर नाई।
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..
भक्ति भावमय पूजा, अंगीकृत कीजै।
जो मन बसे हमारे, इच्छा फल दीजै।
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..
दुखी, दरिद्री ,रोगी , संकटमुक्त किए।
बहु धनधान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए।
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..
ध्यान धर्यो जिस जन ने, मनवांछित फल पायो।
पूजा कथा श्रवण कर, घर आनंद आयो।
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..
शरण गहे की लज्जा, राखियो जगदंबे।
संकट तू ही निवारे, दयामयी अंबे।
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..
संतोषी मां की आरती, जो कोई नर गावे।
ॠद्धिसिद्धि सुख संपत्ति, जी भरकर पावे।
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता..
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🌺 संतोषी माता की आरती अर्थ
जय संतोषी माता आरती:
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता।
अपने सेवक जन को, सुख संपत्ति दाता।।
👉 हे मां संतोषी! आपकी जय हो। आप अपने भक्तों और सेवकों को सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करने वाली हैं। आप सबका कल्याण करती हैं।
सुंदर, चीर सुनहरी, मां धारण कीन्हो।
हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हो।।
👉 मां ने सुनहरी आभा वाला सुंदर वस्त्र धारण किया है। उनके शरीर पर हीरे-पन्नों का अद्भुत श्रृंगार झिलमिला रहा है, जो दिव्य प्रकाश फैला रहा है।
गेरू लाल छटा छवि, बदन कमल सोहे।
मंद हंसत करूणामयी, त्रिभुवन जन मोहे।।
👉 मां का शरीर गेरुए और लाल रंग की आभा से दमक रहा है। उनका मुख कमल जैसा शोभायमान है। वे करुणामयी मुस्कान से त्रिभुवन (तीनों लोकों) के प्राणियों को मोह लेती हैं।
स्वर्ण सिंहासन बैठी, चंवर ढुरे प्यारे।
धूप, दीप, मधुमेवा, भोग धरें न्यारे।।
👉 मां स्वर्ण के सिंहासन पर विराजमान हैं। उनके पास सेवक चंवर झल रहे हैं। उनके सामने धूप, दीप और मधुर फल-मिठाइयों का विशेष भोग अर्पित किया गया है।
गुड़ अरु चना परमप्रिय, तामे संतोष कियो।
संतोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो।।
👉 मां को गुड़ और चना अत्यंत प्रिय हैं। इन्हीं साधारण भोगों से वे प्रसन्न हो जाती हैं। इसी कारण वे “संतोषी” कहलाती हैं और भक्तों को वैभव एवं सुख देती हैं।
जय शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही।
भक्त मण्डली छाई, कथा सुनत मोही।।
👉 मां शुक्रवार के दिन विशेष प्रिय मानी जाती हैं। इस दिन भक्तजन एकत्र होकर माता की कथा सुनते हैं और भक्ति में लीन रहते हैं।
मंदिर जगमग ज्योति, मंगल ध्वनि छाई।
विनय करें हम बालक, चरनन सिर नाई।।
👉 मंदिर में दीपक जल रहे हैं, मंगल ध्वनियाँ गूंज रही हैं। हम बालक समान होकर विनम्रतापूर्वक माता के चरणों में सिर झुकाते हैं।
भक्ति भावमय पूजा, अंगीकृत कीजै।
जो मन बसे हमारे, इच्छा फल दीजै।।
👉 हे माता! हमारी भक्ति से भरी पूजा को स्वीकार कीजिए और हमारे मन में जो भी शुभ इच्छा हो, उसे पूर्ण कीजिए।
दुखी, दरिद्री, रोगी, संकटमुक्त किए।
बहु धनधान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए।।
👉 आप उन भक्तों के दुख, गरीबी और रोग दूर करती हैं, जो सच्चे मन से आपकी आराधना करते हैं। आप उनके घरों को धन, धान्य और सौभाग्य से भर देती हैं।
ध्यान धर्यो जिस जन ने, मनवांछित फल पायो।
पूजा कथा श्रवण कर, घर आनंद आयो।।
👉 जिसने भी आपका ध्यान और भक्ति भाव से आराधना की, उसने अपनी मनचाही इच्छाओं को पाया। आपकी कथा और पूजा से उसके घर में आनंद का वातावरण फैल गया।
शरण गहे की लज्जा, राखियो जगदंबे।
संकट तू ही निवारे, दयामयी अंबे।।
👉 हे जगदंबे! आपकी शरण में आए भक्त की लाज रखिए। हे दयामयी माता! आप ही सब संकटों का निवारण करती हैं।
संतोषी मां की आरती, जो कोई नर गावे।
ऋद्धि-सिद्धि, सुख-संपत्ति, जी भरकर पावे।।
👉 जो कोई भी भक्त सच्चे मन से संतोषी मां की यह आरती गाता है, वह जीवन में ऋद्धि, सिद्धि, सुख और संपत्ति पाता है। मां उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
🌸 सार भावार्थ:
संतोषी माता की यह आरती हमें सिखाती है कि संतोष में ही सुख है। जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से मां की पूजा करता है, उसे जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और संतोष की प्राप्ति होती है। माता अपने भक्तों के सभी दुख दूर कर, उनके जीवन में खुशहाली का प्रकाश फैलाती हैं।
🌼 जय संतोषी माता आरती का महत्व (महिमा):
👉 1. संतोष का प्रतीक:
मां संतोषी हमें सिखाती हैं कि सच्चा सुख भौतिक वस्तुओं में नहीं, बल्कि “संतोष” में है। जो संतोषी है, वही वास्तव में सुखी है।
👉 2. शुक्रवार व्रत का पुण्य:
मां संतोषी का व्रत विशेष रूप से शुक्रवार को किया जाता है। इस दिन कथा-पूजन और आरती करने से सभी संकट, दरिद्रता और दुख दूर हो जाते हैं।
👉 3. सरल भोग – गहरा भाव:
मां को केवल गुड़ और चना का भोग प्रिय है, जो सादगी और संतोष का प्रतीक है। इससे यह संदेश मिलता है कि भक्ति में दिखावा नहीं, भावना महत्वपूर्ण है।
👉 4. इच्छापूर्ति और समृद्धि:
जो व्यक्ति सच्चे मन से मां की आरती गाता है और व्रत करता है, उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उसके जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
👉 5. संकट निवारण की देवी:
मां संतोषी संकटों, रोगों और आर्थिक कष्टों को दूर करने वाली देवी मानी जाती हैं। वे अपने भक्तों के जीवन में शांति और स्थिरता लाती हैं।
जय संतोषी माता आरती( Santoshi Mata Ki Aarti ) हमें यह सिखाती है कि संतोष ही सर्वोच्च सुख है। मां संतोषी की आराधना से व्यक्ति के जीवन में न केवल भौतिक समृद्धि आती है, बल्कि मन की शांति और संतुलन भी प्राप्त होता है। जो सच्चे हृदय से मां का स्मरण करता है, उसके जीवन से सभी संकट दूर हो जाते हैं।
🌸 जय संतोषी माता! 🌸














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