शनिवार व्रत कथा, पूजा विधि और आरती: शनि देव को प्रसन्न करने का श्रेष्ठ उपाय | Shaniwar Vrat Katha

शनिवार व्रत कथा(Shaniwar Vrat Katha): शनि देव को ग्रहों का राजा कहा जाता है। भगवान भोलेनाथ ने उन्हें न्याय के देवता की उपाधि प्रदान की है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति शनिवार का व्रत करता है, उसे पूजा के समय शनिवार व्रत कथा अवश्य सुननी चाहिए।

शनिवार व्रत कथा

शनिवार व्रत कथा (Shaniwar Vrat Katha) : एक बार सभी नौ ग्रह — सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु — के बीच यह विवाद उठ खड़ा हुआ कि उनमें सबसे बड़ा कौन है। सभी अपने-अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करने लगे, जिससे आपसी बहस बढ़ गई। अंततः वे सभी देवताओं के राजा इंद्र के दरबार में पहुँचे ताकि वे इस विवाद का निपटारा करें।

किन्तु देवराज इंद्र भी इस विषय में कोई निर्णय नहीं दे सके। उन्होंने सभी ग्रहों को सलाह दी कि वे पृथ्वी पर जाकर उज्जैन के महान और न्यायप्रिय राजा विक्रमादित्य से न्याय प्राप्त करें, क्योंकि वे अपने निष्पक्ष निर्णयों के लिए प्रसिद्ध हैं।

सभी ग्रह राजा विक्रमादित्य के दरबार में पहुँचे और अपने आने का कारण बताया। राजा विक्रमादित्य उनकी बात सुनकर गहन विचार में पड़ गए, क्योंकि वे जानते थे कि यदि किसी ग्रह को छोटा बताया गया तो वह क्रोधित हो जाएगा।

काफी सोच-विचार के बाद राजा को एक बुद्धिमान उपाय सूझा। उन्होंने नौ प्रकार की धातुओं — सुवर्ण (सोना), रजत (चांदी), कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह — से नौ सिंहासन बनवाने का आदेश दिया। फिर उन्होंने उन्हें उसी क्रम में क्रमबद्ध रूप से सजवा दिया।

राजा विक्रमादित्य ने सभी ग्रहों से निवेदन किया कि वे क्रम अनुसार अपने-अपने सिंहासन पर विराजमान हों। यह शर्त रखी गई कि जो ग्रह सबसे अंत में आसन ग्रहण करेगा, वही सबसे छोटा माना जाएगा। सभी ग्रह एक-एक कर अपने स्थान पर बैठे, और अंत में शनिदेव को सबसे अंतिम सिंहासन प्राप्त हुआ। इस प्रकार वे सबसे छोटे घोषित किए गए।

यह सुनकर शनिदेव क्रोधित हो उठे। उन्हें लगा कि राजा विक्रमादित्य ने जानबूझकर उनके साथ अन्याय किया है। क्रोध से भरे शनिदेव बोले —
“राजा! तू मुझे नहीं जानता। सूर्य एक राशि में एक महीना रहता है, चंद्रमा सवा दो दिन, मंगल डेढ़ महीना, बृहस्पति तेरह महीने, और बुध व शुक्र एक-एक महीने विचरण करते हैं। परंतु मैं, शनि, किसी भी राशि में ढाई वर्ष से लेकर साढ़े सात वर्ष तक रहता हूं। मेरे प्रभाव से बड़े-बड़े वीरों का पतन हुआ है। जब मेरी साढ़ेसाती श्रीराम पर आई थी, तो उन्हें वनवास भोगना पड़ा; और जब रावण पर आई, तो उसकी स्वर्णमयी लंका भी बंदरों की सेना के हाथों नष्ट हो गई।”

शनिदेव ने आगे कहा, “राजा! अब सावधान रहना, क्योंकि जब तेरे ऊपर मेरा समय आएगा, तब तुझे मेरे प्रभाव का वास्तविक अनुभव होगा।” इतना कहकर क्रोधित शनिदेव वहां से प्रस्थान कर गए।

समय बीतता गया। अंततः वह समय भी आया जब राजा विक्रमादित्य की साढ़ेसाती आरंभ हुई। अब शनिदेव ने अपने प्रभाव का परिचय देने का निश्चय किया। वे एक घोड़ा व्यापारी (सौदागर) के रूप में राजा के राज्य में पहुँचे। उनके पास अत्यंत सुंदर और उत्तम नस्ल के घोड़े थे।

राजा को जब इस घोड़ा व्यापारी के बारे में पता चला, तो उन्होंने अपने अश्वपाल (घोड़ों के रखवाले) को आदेश दिया कि वह जाकर कुछ अच्छे घोड़े खरीदे। अश्वपाल ने कई श्रेष्ठ घोड़े खरीदे। तब सौदागर (जो वास्तव में शनिदेव थे) ने उपहारस्वरूप राजा के लिए एक अत्यंत सुंदर, तेज़ और अद्भुत घोड़ा भी भेंट किया — राजा की सवारी के लिए।

राजा विक्रमादित्य जैसे ही उस सुंदर घोड़े पर सवार हुए, घोड़ा अचानक तेज़ी से दौड़ पड़ा। देखते ही देखते वह राजमहल से दूर निकल गया और सरपट दौड़ता हुआ घने वन की ओर चला गया। जंगल के भीतर पहुँचते ही वह रहस्यमय घोड़ा अचानक गायब हो गया।

अब राजा अकेले, भूखे-प्यासे जंगल में भटकते रहे। चलते-चलते उन्हें अत्यधिक प्यास लगी। तभी वहाँ एक ग्वाला (चरवाहा) दिखाई दिया। उसने राजा को पानी पिलाया और उनकी प्यास बुझाई। आभार स्वरूप राजा ने अपनी अंगूठी ग्वाले को दे दी और नगर की ओर चल पड़े।

नगर पहुँचकर राजा एक सेठ की दुकान पर गए और वहाँ जल पिया। उन्होंने अपना नाम “वीका” बताया। उसी दिन सेठ की दुकान पर खूब आमदनी हुई। सेठ को लगा कि यह शुभ व्यक्ति है, इसलिए वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और वीका को अपने घर ले आया।

सेठ के घर में दीवार पर एक खूंटी पर एक कीमती हार टंगा हुआ था। कुछ ही देर में सभी ने देखा कि वह हार धीरे-धीरे खूंटी में समा गया और अंततः पूरी तरह गायब हो गया। जब सेठ लौटा और उसने हार न पाया, तो उसे शक हुआ कि हार वीका ने ही चुरा लिया है।

सेठ ने तत्काल कोतवाल को बुलाया और वीका को चोर बताकर पकड़वा दिया। न्याय के आदेशानुसार राजा विक्रमादित्य (जो अब वीका के रूप में थे) को चोरी का दोषी मानकर हाथ-पैर कटवाने की सजा दी गई। वे अपंग अवस्था में नगर के बाहर फेंक दिए गए।

उसी समय वहाँ से एक दयालु तेली (तेल बेचने वाला व्यक्ति) अपनी बैलगाड़ी से जा रहा था। उसने वीका को देखा और उस पर दया आ गई। उसने उन्हें अपनी गाड़ी में बैठा लिया। अब राजा, अपने कटे हाथ-पैरों के बावजूद, जीभ से “हट-हट” कहकर बैलों को हाँकने लगे।

समय बीतता गया और अंततः राजा विक्रमादित्य की शनि-दशा समाप्त हो गई। वर्षा ऋतु आई, वातावरण में मधुरता छा गई। एक दिन वीका मल्हार राग गाने लगे। उनकी स्वर-लहरियों में इतना दर्द और माधुर्य था कि वह नगर की राजकुमारी मनभावनी के कानों तक पहुँचीं।

राजकुमारी उस राग से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने मन ही मन निश्चय कर लिया — “जो यह राग गा रहा है, मैं उसी से विवाह करूंगी।” उन्होंने दासियों को भेजकर गायक को बुलाने का आदेश दिया। पर जब दासियाँ लौटकर आईं तो उन्होंने बताया — “राजकुमारी, वह व्यक्ति एक अपंग है, उसके हाथ-पैर नहीं हैं।”

यह सुनकर भी राजकुमारी का निश्चय नहीं बदला। उन्होंने कहा — “वह चाहे जैसे भी हों, मेरे हृदय ने उन्हें स्वीकार कर लिया है।” और अगले ही दिन उन्होंने अन्न-जल त्यागकर अनशन आरंभ कर दिया।

राजा को जब यह बात पता चली, तो वे अत्यंत चिंतित हो उठे। जब अनेक प्रयासों के बाद भी राजकुमारी अपने निर्णय से नहीं मानीं, तब अंततः राजा ने उस तेली को बुलवाया और आदेश दिया कि “जिस व्यक्ति को तुम अपने साथ रखते हो, उसे राजमहल लाया जाए।”

फिर राजा ने राजकुमारी मनभावनी और वीका (राजा विक्रमादित्य) के विवाह की तैयारी करने का आदेश दिया।

राजकुमारी मनभावनी का विवाह वीका (राजा विक्रमादित्य) से विधिपूर्वक संपन्न हो गया। दोनों सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे।

एक रात, राजा के स्वप्न में स्वयं शनि देव प्रकट हुए। उन्होंने कहा —
“राजन, देखा तुमने? तुमने मुझे छोटा समझा था, इसी कारण तुम्हें यह सब दुःख सहना पड़ा।”

राजा विक्रमादित्य ने विनम्र होकर हाथ जोड़ते हुए कहा —
“हे न्यायदेव शनि देव! मुझसे जो भूल हुई, उसके लिए क्षमा करें। लेकिन मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ — जैसा दुःख आपने मुझे दिया है, वैसा कष्ट किसी और को न देना।”

शनि देव मुस्कुराए और बोले —
“राजन, तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार है। जो कोई मेरा व्रत करेगा, मेरी कथा सुनेगा, और श्रद्धा से मेरा ध्यान करेगा, उसके सारे दुःख समाप्त हो जाएंगे। जो व्यक्ति शनिवार के दिन चींटियों को आटा खिलाएगा और गरीबों की सेवा करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होंगी।”

यह कहकर शनि देव ने राजा को आशीर्वाद दिया और उनके कटे हुए हाथ-पैर पुनः यथावत कर दिए।

अगली सुबह जब राजकुमारी मनभावनी की आँख खुली, तो उन्होंने देखा कि वीका के हाथ-पैर फिर से वैसे ही हो गए हैं जैसे पहले थे। वह आश्चर्यचकित रह गईं। वीका मुस्कुराए और बोले —
“प्रिये, मैं वास्तव में कोई साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि उज्जैन का राजा विक्रमादित्य हूँ।”

यह सुनकर राजकुमारी आनंद से झूम उठीं। जब यह समाचार नगर में फैला, तो सब लोग अत्यंत प्रसन्न हुए। वही सेठ, जिसने कभी उन्हें चोर समझकर सजा दिलवाई थी, अब पछताते हुए राजा के चरणों में गिर पड़ा और क्षमा याचना करने लगा।

राजा ने बड़े सौम्य स्वर में कहा —
“सेठ, इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं था। यह सब शनि देव के कोप का परिणाम था।”

सेठ ने निवेदन किया —
“राजन, मुझे तभी शांति मिलेगी जब आप कृपा करके मेरे घर पधारकर भोजन ग्रहण करें।”

राजा ने उसकी विनती स्वीकार कर ली। सेठ ने अनेक प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनों से राजा का सत्कार किया। जब राजा भोजन कर रहे थे, तभी सभी ने देखा — वही खूंटी, जिसने कभी हार निगल लिया था, अब वही हार वापस उगल रही थी। यह देखकर सब लोग दंग रह गए।

सेठ ने प्रसन्न होकर राजा को अनेक स्वर्ण मुद्राएँ भेंट कीं और अपनी कन्या श्रीकंवरी के साथ विवाह का निवेदन किया। राजा ने सहर्ष स्वीकार किया।

इसके पश्चात राजा विक्रमादित्य अपनी दोनों रानियों — मनभावनी और श्रीकंवरी — के साथ उज्जैन लौट आए। वहाँ पूरे नगर में दीपमालाएँ जलाई गईं, उत्सव मनाया गया, और आनंद का वातावरण फैल गया।

राजा ने प्रजा के समक्ष घोषणा की —
“मैंने कभी अज्ञानवश शनि देव को सबसे छोटा कहा था, लेकिन आज मैं यह स्वीकार करता हूँ कि वे ही सबसे श्रेष्ठ और न्यायप्रिय देवता हैं।”

उस दिन से पूरे राज्य में शनिदेव की पूजा, आराधना और व्रत-कथा का चलन आरंभ हो गया। जो कोई श्रद्धा से शनिदेव के व्रत की कथा सुनता या पढ़ता है, उसके सारे दुःख, संकट और पाप दूर हो जाते हैं — और उसके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है।

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शनिवार का व्रत कब और कैसे करें

शनिदेव को न्याय का देवता कहा गया है। वे कर्म के अनुसार फल देने वाले देव हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन में दुःख, आर्थिक तंगी, या लगातार असफलताओं से गुजर रहा हो, तो शनिवार का व्रत उसके लिए अत्यंत शुभ माना गया है। इस व्रत से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति के जीवन से संकट, रोग, दरिद्रता और अशुभ प्रभाव दूर हो जाते हैं।

शनिवार के व्रत का महत्व

शनिवार का व्रत मुख्यतः शनिदेव को प्रसन्न करने और उनके अशुभ प्रभाव को शांत करने के लिए किया जाता है। जो लोग शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या या जन्मकुंडली में शनि दोष से पीड़ित होते हैं, उन्हें यह व्रत विशेष रूप से करना चाहिए।

जो भक्त श्रद्धा और नियमपूर्वक यह व्रत करते हैं, उन्हें न्याय, सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। शनिदेव व्यक्ति के जीवन से कठिनाइयाँ हटाकर उसे परिश्रम का उचित फल प्रदान करते हैं।

शनिवार के व्रत की शुरुआत कब करें

  • निर्दोष शनिवार से व्रत प्रारम्भ करना सर्वोत्तम माना गया है।
  • सामान्यतः किसी भी वार का व्रत शुक्ल पक्ष (बढ़ते चाँद के दिनों) में उस वार के पहले आगमन से आरंभ करना शास्त्रसम्मत है।
  • अतः शनिवार का व्रत भी शुक्ल पक्ष के पहले शनिवार से शुरू किया जा सकता है।
  • व्रत प्रारंभ करने से पूर्व पंचांग या किसी योग्य ज्योतिषाचार्य से यह अवश्य जान लेना चाहिए कि उस दिन शनि दोष रहित वार है और चंद्रमा जन्मराशि से 4वें, 8वें या 12वें भाव में नहीं है।
  • इच्छानुसार व्रत की शुरुआत शनि प्रदोष तिथि से भी की जा सकती है, यह अत्यंत शुभ मानी गई है।

शनिवार व्रत व पारण की विधि | शनि देव को प्रसन्न करने का श्रेष्ठ उपाय

Shaniwar Vrat Katha, शनिवार व्रत कथा
Shaniwar Vrat Katha, शनिवार व्रत कथा
  1. प्रातः स्नान और संकल्प: शनिवार की सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अपने इष्टदेव, गुरु और माता-पिता का आशीर्वाद लेकर व्रत का संकल्प करें।
  2. पूजन की तैयारी: सर्वप्रथम विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की पूजा करें, फिर नवग्रहों को प्रणाम करें।
  3. शनिदेव का पूजन:
  •  पीपल या शमी वृक्ष के नीचे एक लोहे या मिट्टी का कलश रखें और उसमें सरसों का तेल भरें।
  •  उस कलश के ऊपर शनिदेव की लोहे की प्रतिमा स्थापित करें।
  •  प्रतिमा को काले वस्त्र पहनाएँ और कलश को काले कम्बल से ढक दें।
  • इसके बाद शनिदेव की प्रतिमा का स्नान कराएँ और चंदन, रोली, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें।
  1.  वृक्ष पूजन:
  •  पीपल या शमी वृक्ष की भी इसी प्रकार पूजा करें।
    एक पात्र में लौंग, काली इलायची, लोहे की कील, काला तिल, कच्चा दूध और गंगाजल मिलाकर पश्चिम दिशा की ओर मुख करके वृक्ष की जड़ में अर्पित करें।
  •  फिर वृक्ष के तने पर तीन तार का सूत आठ बार लपेटें और उसकी परिक्रमा करें।
  1. मंत्र जप:

पूजा के बाद रुद्राक्ष की माला से शनिदेव के बीज मंत्र या शनि गायत्री मंत्र का जप करें —

  • ॐ शं शनैश्चराय नमः।
    या
  • ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
  • छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥

विशेष उपाय

* शनिवार के दिन काले तिल, काला कपड़ा, लोहे के बर्तन, और सरसों का तेल का दान करना अत्यंत शुभ है।
* चींटियों को आटा डालना, कौओं को भोजन कराना, और गरीबों को तेल या वस्त्र देना शनि कृपा प्राप्त करने का सरल उपाय है।

शनिवार व्रत फल

जो व्यक्ति श्रद्धा और नियम से शनिवार का व्रत करते हैं, उनकी शनि की पीड़ा शांत होती है, धन-संपत्ति में वृद्धि होती है, और जीवन में सुख-शांति का वास होता है। शनिदेव ऐसे भक्तों को न्याय, सफलता और स्थिरता प्रदान करते हैं।

शनिवार व्रत में इन बातों का रखें विशेष ध्यान

शनिवार के व्रत में पूजा-विधि के साथ कुछ महत्वपूर्ण नियमों और सावधानियों का पालन करना अत्यावश्यक माना गया है। इनसे व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है और शनिदेव की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।

शनिवार व्रत जप

मंत्रजप के पश्चात् शनिदेव की व्रत कथा का श्रद्धापूर्वक पाठ अवश्य करें।

कथा सुनना या सुनाना दोनों ही पुण्यदायक हैं। इससे शनिदेव प्रसन्न होकर साधक के जीवन से संकट और बाधाएँ दूर करते हैं।

शनिवार व्रत दान और सेवा

पूजा के बाद काले कुत्ते (जो पालतू न हों) को उड़द की पीठी, मिष्ठान्न, या तेल में बने पकवान खिलाना अत्यंत शुभ माना गया है।

यदि काला कुत्ता न मिले, तो इन वस्तुओं को किसी डाकौत (शनिवार को तेल मांगने वाले) व्यक्ति या गरीब ब्राह्मण को दान कर सकते हैं।

यदि संयोगवश कोई वृद्ध कृष्णवर्ण ब्राह्मण मिल जाए, तो उसे दान देना विशेष फलदायक होता है।

शनिवार व्रत पालन की विधि

पूजा पूर्ण करने के बाद, शनिदेव के मंत्र —
“ॐ शं शनैश्चराय नमः”
— का यथाशक्ति अधिक से अधिक जप करें।

इस दिन निराहार (अन्न रहित) रहना उत्तम माना गया है। केवल फल, दूध या जल ग्रहण कर सकते हैं।

शाम को सूर्यास्त से कुछ समय पूर्व व्रत का पारण करें।

शनिवार व्रत पारण की सामग्री

व्रत खोलते समय भोजन में अवश्य शामिल करें —

तिल से बनी वस्तुएँ

तेल में बने व्यंजन

इन दोनों का सेवन शनिदेव को अत्यंत प्रिय है और यह व्रत की सिद्धि का सूचक माना जाता है।

शनिवार व्रत नियमित पालन

पहला व्रत इस विधि से सम्पन्न करने के बाद, आगे के प्रत्येक शनिवार को:

प्रातःकाल स्नानादि के बाद दीप और धूप जलाकर शनिदेव की पूजा करें।

कम से कम 108 बार “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मंत्र का जप अवश्य करें।

सायंकाल में एक बार भोजन करें, और यदि संभव हो तो हनुमान जी के मंदिर दर्शन करें — यह अत्यंत शुभकारी होता है, क्योंकि शनिदेव हनुमान भक्तों पर कभी क्रोध नहीं करते।

शनिदेव के दस पवित्र नाम

शनिवार का व्रत करने वाले साधक को प्रतिदिन शनिदेव के इन दस नामों का स्मरण करना चाहिए —

कोणस्थः, पिंगलो, बभ्रुः, कृष्णो, रौद्रोन्तको, यमः, सौरिः, शनैश्चरः, मन्दः, पिप्पलादेन संस्तुतः।

अर्थात्:

  1. कोणस्थ
  2. पिंगल
  3. बभ्रु
  4. कृष्ण
  5. रौद्रान्तक
  6. यम
  7. सौरि
  8. शनैश्चर
  9. मन्द
  10. पिप्पलाद

इन दस नामों से शनिदेव का स्मरण करने पर उनके सभी रूपों की कृपा प्राप्त होती है।

शनिवार व्रत आरती

शनि देव आरती पाठ:

जय शनि देव, जय शनि देव।
अंधकार हरण, दुख निवारक, मंगलकारी।
जय शनि देव, जय शनि देव।

नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥

कोणस्थः पिंगलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रान्तको यमः।
सौरिः शनैश्चरः मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः॥

तुलसीद्रव पुष्पांजलि, दीपक जले शुद्धि भारी।
भक्तजन दुख निवारक, कृपा करें शनि हारी।

जय शनि देव, जय शनि देव।
संकट हर, मनोकामना पूरी करें सदा।
जय शनि देव, जय शनि देव।

Usage Tips:

  1. आरती शनिवार के दिन प्रातः या शाम को करें।

  2. दीपक तेल का हो और हाथ में या शनि देव के सामने रखा जाए।

  3. आरती के दौरान भक्तजन मंत्र का जप कर सकते हैं —
    “ॐ शं शनैश्चराय नमः”

“शनिवार व्रत और शनि पूजा से जीवन में शनि दोष दूर होते हैं और भक्तों पर शनिदेव की असीम कृपा बनी रहती है।”

|| जय शनिदेव ||

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पवन शास्त्री, साहित्याचार्य (M.A.) - Author

भारतीय धर्म, पुराण, ज्योतिष और आध्यात्मिक ज्ञान के शोधकर्ता। Sursarita.in (धर्म कथा गंगा) पर वे सरल भाषा में धार्मिक कथाएँ, राशिफल, पञ्चांग और व्रत विधियाँ साझा करते हैं।

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Pawan Shastri

Pawan Shastri is an experienced music teacher and spiritual knowledge expert with 10 years of experience in harmonium, keyboard, singing, and classical music.

He holds an M.A. degree and is also a certified Jyotish Shastri (Astrology Expert). His articles and content aim to share devotional, musical, and spiritual knowledge in a simple, accurate, and emotionally engaging manner.

Pawan Shastri believes that the fusion of devotion in melody and wisdom in knowledge can bring peace, energy, and positivity to everyone’s life.

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