रविवार आरती और व्रत करने से भक्तों को सूर्य देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत जीवन में ऊर्जा, उजाला और सकारात्मकता लाता है। नियमित पूजा और आरती से शरीर और मानसिक स्वास्थ्य मजबूत होता है, थकान और तनाव दूर होते हैं, और आत्मबल तथा साहस में वृद्धि होती है।
सूर्य भगवान आरती | Sunday Vrat Aarti Lyrics | रविवार व्रत आरती
Sunday Vrat Aarti Lyrics, सूर्य भगवान आरती:
ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।
धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
सारथी अरुण हैं प्रभु तुम, श्वेत कमलधारी।
तुम चार भुजाधारी। अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटि किरण पसारे।
तुम हो देव महान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
ऊषाकाल में जब तुम, उदयाचल आते।
सब तब दर्शन पाते। फैलाते उजियारा, जागता तब जग सारा।
करे सब तब गुणगान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
संध्या में भुवनेश्वर अस्ताचल जाते।
गोधन तब घर आते। गोधूलि बेला में, हर घर हर आंगन में।
हो तव महिमा गान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
देव-दनुज नर-नारी, ऋषि-मुनिवर भजते।
आदित्य हृदय जपते। स्तोत्र ये मंगलकारी, इसकी है रचना न्यारी।
दे नव जीवनदान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
तुम हो त्रिकाल रचयिता, तुम जग के आधार।
महिमा तब अपरम्पार। प्राणों का सिंचन करके भक्तों को अपने देते।
बल, बुद्धि और ज्ञान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
भूचर जलचर खेचर, सबके हों प्राण तुम्हीं।
सब जीवों के प्राण तुम्हीं। वेद-पुराण बखाने, धर्म सभी तुम्हें माने।
तुम ही सर्वशक्तिमान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
पूजन करतीं दिशाएं, पूजे दश दिक्पाल।
तुम भुवनों के प्रतिपाल। ऋतुएं तुम्हारी दासी, तुम शाश्वत अविनाशी।
शुभकारी अंशुमान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।
धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।
सूर्य भगवान की आरती (रविवार व्रत आरती) – पाठ और अर्थ

ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
अर्थ: सूर्य देव को नमन। वे दिन के निर्माता और जगत के जीवनदाता हैं।
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।
अर्थ: आप संसार के नेत्र समान हैं और सत्व, रज और तम तीनों गुणों में नियंत्रित हैं।
धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।
अर्थ: सारी पृथ्वी और जीव आपके ध्यान और कृपा में स्थित हैं।
सारथी अरुण हैं प्रभु तुम, श्वेत कमलधारी।
अर्थ: आपके रथ के सारथी अरुण हैं और आप श्वेत कमल पर विराजमान हैं।
तुम चार भुजाधारी। अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटि किरण पसारे।
अर्थ: आपके चार भुजाएं हैं, सात घोड़े आपके रथ को खींचते हैं और आपकी किरणें करोड़ों जीवों में फैली हुई हैं।
तुम हो देव महान।।
अर्थ: आप सभी देवों में महान और शक्तिशाली हैं।
ऊषाकाल में जब तुम, उदयाचल आते। सब तब दर्शन पाते।
अर्थ: प्रातःकाल जब आप उदयाचल से उदित होते हैं, सभी जीव आपके दर्शन पाते हैं।
फैलाते उजियारा, जागता तब जग सारा। करे सब तब गुणगान।।
अर्थ: आप दुनिया में उजाला फैलाते हैं और सारे प्राणी जागते हैं, आपकी महिमा का गुणगान करते हैं।
संध्या में भुवनेश्वर अस्ताचल जाते। गोधन तब घर आते।।
अर्थ: संध्या में आप अस्ताचल की ओर जाते हैं, और घर-आंगन में शांति आती है।
गोधूलि बेला में, हर घर हर आंगन में। हो तव महिमा गान।।
अर्थ: सूर्यास्त के समय हर घर और आंगन में आपके महिमा का गुणगान होता है।
देव-दनुज नर-नारी, ऋषि-मुनिवर भजते। आदित्य हृदय जपते।।
अर्थ: देवता, असुर, पुरुष, नारी और ऋषि-मुनि सभी सूर्य देव की भक्ति करते हैं और उनके हृदय में जप करते हैं।
स्तोत्र ये मंगलकारी, इसकी है रचना न्यारी। दे नव जीवनदान।।
अर्थ: यह आरती मंगलकारी है, और इसे सुनने और पाठ करने से जीवन में नवीन ऊर्जा और जीवनदान मिलता है।
तुम हो त्रिकाल रचयिता, तुम जग के आधार। महिमा तब अपरम्पार।।
अर्थ: आप अतीत, वर्तमान और भविष्य के निर्माता हैं, जगत के आधार हैं और आपकी महिमा अपार है।
प्राणों का सिंचन करके भक्तों को अपने देते। बल, बुद्धि और ज्ञान।।
अर्थ: आप सभी जीवों में जीवन और प्राण संचार करते हैं, और भक्तों को शक्ति, बुद्धि और ज्ञान प्रदान करते हैं।
भूचर जलचर खेचर, सबके हों प्राण तुम्हीं। सब जीवों के प्राण तुम्हीं।।
अर्थ: पृथ्वी पर, जल में और आकाश में सभी प्राण आपके ही हैं।
वेद-पुराण बखाने, धर्म सभी तुम्हें माने। तुम ही सर्वशक्तिमान।।
अर्थ: वेद और पुराण आपके गुणों का वर्णन करते हैं। सभी धर्म आपको मानते हैं। आप ही सर्वशक्तिमान हैं।
पूजन करतीं दिशाएं, पूजे दश दिक्पाल। तुम भुवनों के प्रतिपाल।।
अर्थ: चारों दिशाओं और दस दिक्पाल भी आपकी पूजा करते हैं। आप ही भुवनों के पालक हैं।
ऋतुएं तुम्हारी दासी, तुम शाश्वत अविनाशी। शुभकारी अंशुमान।।
अर्थ: ऋतुएं आपकी दासी हैं। आप शाश्वत और अविनाशी हैं। आप शुभकारी और अनंत तेजस्वी हैं।
ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।
धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।
अर्थ: अंत में सभी भक्त मिलकर सूर्य भगवान की जय करते हैं, उन्हें नमन करते हैं और उनके ध्यान में रहते हैं।
रविवार व्रत आरती का महत्त्व
सूर्य देव की भक्ति करने से जीवन के संकट कम होते हैं और नेत्र संबंधी और अन्य शारीरिक कष्टों से राहत मिलती है।
साथ ही, रविवार व्रत और आरती से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। यह व्रत न केवल भौतिक संपन्नता दिलाता है, बल्कि भक्त की आध्यात्मिक उन्नति और भक्ति को भी बढ़ाता है। नियमित रूप से आरती करने से परिवार में सौहार्द बना रहता है और जीवन में शांति, स्वास्थ्य और खुशहाली बनी रहती है।
रविवार व्रत आरती कैसे करें
- रविवार व्रत के दिन सूर्योदय से पूर्व सूर्य देव की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
- ताम्बे के पात्र में जल और लाल फूल अर्पित करें।
- आरती का पाठ 1 या 3 बार करें।
- आरती के बाद भक्त सूर्य देव के चरणों में अक्षत और गुड़ अर्पित करें।
- अंत में परिवार और पड़ोस के लोगों को प्रसाद बांटें।
रविवार व्रत के लाभ
रविवार व्रत करने से सूर्य देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में ऊर्जा, सकारात्मकता और उत्साह बढ़ता है। नियमित व्रत रखने से शरीर और मानसिक स्वास्थ्य मजबूत होता है, थकान और तनाव दूर होते हैं, और आत्मबल तथा साहस में वृद्धि होती है। सूर्य देव की भक्ति करने से जीवन के संकट कम होते हैं, नेत्र संबंधी और अन्य शारीरिक कष्टों में राहत मिलती है।
साथ ही, रविवार व्रत से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। यह व्रत न केवल भौतिक संपन्नता लाता है, बल्कि भक्त की आध्यात्मिक उन्नति और भक्ति को भी बढ़ाता है। नियमित व्रत करने से परिवार में सौहार्द बना रहता है, जीवन में खुशहाली आती है और शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
सभी भक्तों के जीवन में सूर्य देव की कृपा बनी रहे, स्वास्थ्य, सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त हो।
।। ॐ सूर्याय नमः ।।














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