भोजन से पहले
मंत्र क्यों बोलना चाहिए?
संस्कृत भोजन मंत्र:
अन्नं ब्रह्मेति व्याजानात्।
अन्नं ब्रह्मैव ते नमः॥
भावार्थ:
भोजन स्वयं ब्रह्म स्वरूप है।
हम उस ब्रह्मरूप अन्न को प्रणाम करते हैं।
दूसरा भोजन मंत्र:
ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविः
ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं
ब्रह्मकर्मसमाधिना
भावार्थ:
यह अन्न, इसे खाने वाला, पकाने वाला और यह क्रिया — सब ब्रह्म ही हैं।
तीसरा भोजन मंत्र:
अन्नं समर्पयामि।
जलं समर्पयामि।
भावार्थ:
यह अन्न और जल मैं ईश्वर को समर्पित करता हूँ।
भोजन मंत्र बोलने के लाभ:
✅ मन की शांति और कृतज्ञता का भाव
✅ भोजन पचने की शक्ति में वृद्धि
✅ ईश्वर से आत्मीय जुड़ाव
✅ सात्विक ऊर्जा का संचार
भोजन केवल शरीर का नहीं, आत्मा का पोषण भी है।
मंत्र के साथ खाया गया भोजन "प्रसाद" बन जाता है। 🍃
भोजन से पहले बोले —
“ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविः...”