
Yogeshwar Dwadashi 2025: कार्तिक मास का हर एक दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की आराधना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है, लेकिन शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि, जिसे गोवत्स द्वादशी या योगेश्वर द्वादशी कहा जाता है, उसका स्थान विशेष है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की “योगेश्वर” रूप में पूजा की जाती है — वही श्रीकृष्ण जिन्होंने गीता में धर्म, योग और भक्तिभाव का सच्चा रहस्य बताया।
Yogeshwar Dwadashi 2025: कार्तिक शुक्ल पक्ष योगेश्वर द्वादशी व्रत कथा, पूजा विधि, पारण व शुभ मुहूर्त जानें
कार्तिक शुक्ल पक्ष योगेश्वर द्वादशी व्रत मुहूर्त:
पंचांग के मुताबिक कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि 2 नवंबर 2025 को सुबह 7 बजकर 33 मिनट से प्रारंभ हो रही है। इस तिथि का समापन 3 नवंबर को सुबह 2 बजकर 7 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, इस वर्ष 2 नवंबर 2025 को तुलसी विवाह मनाया जाएगा।
योगेश्वर द्वादशी का पारण 3 नवंबर 2025, सोमवार को सुबह 5 बजकर 7 मिनट के बाद किया जाएगा। यह पारण देवउठनी एकादशी के अगले दिन किया जाता है।
- द्वादशी तिथि का प्रारंभ: 2 नवंबर 2025, रविवार को सुबह 7 बजकर 31 मिनट
- द्वादशी तिथि का समापन: 3 नवंबर 2025, सोमवार को सुबह 5 बजकर 7 मिनट
- पारण का समय: 3 नवंबर 2025, सोमवार को सुबह 5 बजकर 7 मिनट के बाद
🌺 योगेश्वर द्वादशी का महत्व
इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की “योगेश्वर” रूप में पूजा का विधान है। उन्होंने संसार को कर्म और योग का मार्ग दिखाया। कहते हैं, जिस घर में इस दिन गाय-बछड़े की पूजा होती है, वहाँ अक्षय लक्ष्मी का वास होता है।
यह व्रत न केवल धन और समृद्धि देता है, बल्कि जीवन के हर कार्य में दिव्यता और सफलता भी प्रदान करता है।
🌿 योगेश्वर द्वादशी पूजा के कारण और महत्व (Yogeshwar Dwadashi Puja Mahatva)
1. भगवान विष्णु और तुलसी विवाह का प्रतीक
कार्तिक शुक्ल द्वादशी के दिन भगवान विष्णु ने शालिग्राम रूप में माता तुलसी से विवाह किया था। यह दिव्य मिलन धर्म, प्रेम और भक्ति के अद्भुत संगम का प्रतीक माना जाता है। इसी कारण इस दिन को तुलसी विवाह के रूप में भी मनाया जाता है।
2. तुलसी पूजन का विशेष महत्व
इस दिन तुलसी माता के पौधे को अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है। घर के आंगन या मंदिर में तुलसी के पौधे की पूजा करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है, क्योंकि तुलसी और विष्णु अविभाज्य माने गए हैं।
3. पापों से मुक्ति और शुद्धि का दिवस
योगेश्वर द्वादशी के दिन की गई सच्चे मन से पूजा से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह दिन आत्मिक शुद्धि और कर्मों की शुद्धता का प्रतीक माना जाता है।
4. सुख, समृद्धि और सकारात्मकता की प्राप्ति
इस व्रत और पूजा से घर में आर्थिक समृद्धि, वैवाहिक जीवन में सुख, और पारिवारिक सौभाग्य बढ़ता है। यह दिन मन, घर और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
5. मोक्ष और आध्यात्मिक उन्नति का द्वार
कथाओं के अनुसार, जो भक्त इस दिन भगवान विष्णु और तुलसी माता की विधिवत पूजा करते हैं, उन्हें न केवल जीवन में सुख-शांति प्राप्त होती है बल्कि मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
🌿 योगेश्वर द्वादशी की पहली कथा (Yogeshwar Dwadashi Ki Pahali Katha 2025)
Yogeshwar Dwadashi Katha 2025 के अनुसार यह तिथि भगवान विष्णु और माता तुलसी के दिव्य मिलन से जुड़ी है। यह कथा अत्यंत पवित्र और भावनात्मक मानी जाती है क्योंकि यह भक्ति, त्याग और दिव्य प्रेम का प्रतीक है।
🌸 वृंदा का त्याग और तुलसी का उद्भव
पुराणों के अनुसार, जब असुरराज जालंधर का वध भगवान विष्णु के हाथों हुआ, तब उसकी पत्नी वृंदा (तुलसी) ने यह जानकर अत्यंत दुखी होकर भगवान विष्णु को श्राप दिया।
श्राप था —
“हे विष्णु! जैसे आपने मेरे पति का रूप लेकर मुझे धोखा दिया, वैसे ही आप भी अपनी पत्नी से अलग होंगे।”
माता लक्ष्मी के अनुरोध पर वृंदा ने अंततः भगवान विष्णु को अपने श्राप से मुक्त किया। फिर उसने अपने पति जालंधर का कटा हुआ सिर लेकर सती हो गई।
वृंदा के सती होने के बाद, उसकी चिता की राख से एक पवित्र पौधा उत्पन्न हुआ। वही पौधा बाद में तुलसी कहलाया।
🕉️ भगवान विष्णु का वरदान और तुलसी का महत्त्व
भगवान विष्णु ने प्रकट होकर कहा — “हे वृंदा! अब से तुम तुलसी रूप में संसार में पूजित होगी। मेरी पूजा तुम्हारे बिना अधूरी मानी जाएगी।” फिर उन्होंने शालिग्राम शिला को अपना रूप प्रदान करते हुए कहा —
“मैं सदैव इस शालिग्राम शिला में श्रीहरि शालिग्राम के रूप में निवास करूंगा। मेरी पूजा तभी पूर्ण होगी जब उसमें तुम्हारा, अर्थात तुलसी पत्र का अर्पण होगा।”
🌿 तुलसी विवाह और योगेश्वर द्वादशी का आरंभ
उसी समय से कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि को तुलसी विवाह का शुभ पर्व मनाया जाने लगा।
इस दिन शालिग्राम भगवान (भगवान विष्णु का प्रतीक) और तुलसी माता (वृंदा का स्वरूप) का विवाह बड़े उत्सव के साथ किया जाता है।
देवलोक में भी इस तिथि पर विष्णु-तुलसी विवाह का भव्य आयोजन हुआ था। तभी से यह तिथि योगेश्वर द्वादशी के नाम से प्रसिद्ध हुई — क्योंकि इस दिन भगवान श्रीविष्णु ने “योगेश्वर” स्वरूप में तुलसी के प्रति अपनी निष्ठा और योग-शक्ति का प्रदर्शन किया।
💫 महत्व और आस्था (Yogeshwar Dwadashi Significance)
इस व्रत से मनुष्य के जीवन में भक्ति, सौभाग्य और वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है।
जो भक्त कार्तिक शुक्ल द्वादशी के दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराता है, उसे भगवान विष्णु का विशेष आशीर्वाद मिलता है और उसके घर में सदैव सौभाग्य, समृद्धि और शांति का वास रहता है।
⚔️ योगेश्वर द्वादशी की दूसरी कथा (Yogeshwar Dwadashi Ki Dusari Kahani 2025)
Yogeshwar Dwadashi की दूसरी प्रसिद्ध कथा महाभारत के समय की है। यह कथा भगवान श्रीकृष्ण के “योगेश्वर” स्वरूप की महिमा को प्रकट करती है — जहाँ उन्होंने अपने भक्तों के लिए स्वयं अपने वचन तक का त्याग कर दिया।
🕉️ अर्जुन और दुर्योधन का श्रीकृष्ण से मिलना
कुरुक्षेत्र युद्ध आरंभ होने से पहले अर्जुन और दुर्योधन, दोनों ही भगवान श्रीकृष्ण के पास पहुंचे। दोनों चाहते थे कि श्रीकृष्ण उनके पक्ष में रहें। भगवान श्रीकृष्ण ने मुस्कुराकर कहा — “तुम दोनों में से एक मेरे साथ रह सकता है, लेकिन मैं युद्ध में शस्त्र नहीं उठाऊंगा। और दूसरा मेरी पूरी अक्षौहिणी सेना ले सकता है।”
दुर्योधन ने बिना सोचे-विचारे श्रीकृष्ण की सेना चुनी, जबकि अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण का साथ।
श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर कहा — “अर्जुन, भले ही मैं शस्त्र न उठाऊं, लेकिन तेरे रथ का सारथी बनकर तुझे धर्म के मार्ग पर चलाऊंगा।”
⚔️ जब श्रीकृष्ण ने अपना वचन तोड़ दिया
युद्ध के दौरान भीष्म पितामह की प्रतापी शक्ति से पांडव सेना भयभीत हो गई। भीष्म की गर्जना से पूरा रणभूमि काँप उठा। अर्जुन सहित कोई भी योद्धा उनके सामने टिक नहीं पा रहा था।
यह देखकर भगवान श्रीकृष्ण का हृदय द्रवित हो उठा। उन्होंने अर्जुन से कहा — “अब मैं यह अन्याय नहीं देख सकता। अपने भक्तों की रक्षा के लिए मुझे अपने वचन का त्याग करना ही होगा।”
इतना कहकर उन्होंने रथ से उतरकर रथ का पहिया उठाया और भीष्म की ओर दौड़ पड़े। यह देखकर भीष्म ने दोनों हाथ जोड़कर कहा — “प्रभु! आप ही धर्म हैं, आप ही सत्य हैं। यदि आज आपने शस्त्र उठाया, तो यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य होगा।”
इस घटना ने सम्पूर्ण ब्रह्मांड को यह संदेश दिया कि — “भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए स्वयं अपने वचनों को भी तोड़ सकते हैं।”
📖 गीता उपदेश और योगेश्वर स्वरूप
उसी युद्धभूमि में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवद गीता का दिव्य उपदेश दिया — जिसमें उन्होंने कर्म योग, ज्ञान योग और भक्ति योग का अमर संदेश दिया।
उन्होंने कहा — “कर्म करो, फल की चिंता मत करो। जो अपने कर्म को ईश्वर को अर्पित करता है, वही सच्चा योगी है।” यही वह क्षण था जब श्रीकृष्ण “योगेश्वर” के नाम से विख्यात हुए — योग, ज्ञान और भक्ति के परम स्रोत।
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🌺 योगेश्वर द्वादशी का महत्व (Yogeshwar Dwadashi Importance)
इसी कारण कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को योगेश्वर द्वादशी के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन श्रद्धापूर्वक भगवान श्रीकृष्ण की योगेश्वर रूप में पूजा करने से भक्त को धर्म, भक्ति, साहस और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कहा गया है —
“जो योगेश्वर द्वादशी के दिन श्रीकृष्ण का स्मरण करता है, उसके जीवन में कोई भी युद्ध अधूरा नहीं रहता।”
🌼 योगेश्वर द्वादशी पूजा विधि (Yogeshwar Dwadashi Puja Vidhi 2025)
योगेश्वर द्वादशी के दिन भगवान श्री विष्णु और माता तुलसी की पूजा विशेष फलदायक मानी जाती है। इस दिन तुलसी विवाह, दीपदान और मंत्रजप का अत्यंत महत्व होता है। पूजा से पहले शुद्ध भाव, स्वच्छता और संकल्प के साथ आरंभ करना आवश्यक है।
🕉️ प्रातःकाल की तैयारी
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सुबह जल्दी उठें, स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
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घर या मंदिर में पूजा स्थल को शुद्ध जल और गंगाजल से पवित्र करें।
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पूजा के लिए तुलसी का पौधा और भगवान विष्णु (शालिग्राम) की प्रतिमा या चित्र तैयार करें।
🌿 भगवान विष्णु और तुलसी विवाह पूजा
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पूजा स्थान पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
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तुलसी माता को जल, अक्षत, रोली, फूल और दीप अर्पित करें।
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तुलसी जी का विवाह शालिग्राम (भगवान विष्णु के स्वरूप) से करें।
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विवाह के दौरान मधुर भक्ति गीत या विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
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तुलसी महात्म्य का पाठ करें और भगवान विष्णु से अपने परिवार के कल्याण की प्रार्थना करें।
🍚 भोग और नैवेद्य अर्पण
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भगवान विष्णु को नैवेद्य चढ़ाएं — नारियल, गुड़, गन्ना, खजूर, केला, मिश्री, पान और सुपारी अर्पित करें।
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तुलसी पत्ते सहित भोग अर्पण करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
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दही-चावल या तुलसी मिश्रित प्रसाद भी अर्पित करें।
🔱 मंत्र जाप और ध्यान
पूजन के समय निम्न मंत्रों का श्रद्धा से जाप करें —
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
“ॐ श्री लक्ष्मी-नारायणाय नमः”
साथ ही यदि संभव हो तो विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
मंत्र जाप के साथ भगवान विष्णु का ध्यान करें, जो शालिग्राम स्वरूप में माता तुलसी के साथ विराजमान हैं।
🪔 दीपदान और दान-पुण्य
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तुलसी के पौधे के पास मिट्टी या पीतल के दीपक जलाएं और दीपदान करें।
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घर के मुख्य द्वार और तुलसी चौरा पर दीपक जलाना अत्यंत शुभ माना जाता है।
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इस दिन अन्न, वस्त्र और दक्षिणा का दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
🙏 आरती और प्रसाद वितरण
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पूजा पूर्ण होने के बाद भगवान विष्णु और तुलसी जी की आरती करें।
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प्रसाद को परिवारजनों में बांटें और स्वयं भी ग्रहण करें।
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आरती के बाद तुलसी के पौधे की परिक्रमा करें और मनोकामना व्यक्त करें।
☀️ व्रत पारण (Paaran)
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अगले दिन सूर्योदय के बाद शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करें।
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पारण में भगवान को अर्पित प्रसाद या फलाहार ग्रहण करें।
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पारण के समय भगवान विष्णु और तुलसी माता का पुनः स्मरण करें और आभार प्रकट करें।
यह विधि श्रद्धा और भक्ति से की जाए तो व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष — तीनों का संयोग प्राप्त होता है।













